Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 83

background image
श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः ४ः वैशाख सुद २
अज्ञानीए पोताना चैतन्य स्वादने कदी चाख्यो नथी, पर चीजने पण कोइ
आत्मा भोगवी शकतो नथी. तो आत्माए कर्युं शुं?–के अज्ञानपणे पोताना विकार
भावोने ज भोगव्या. जेम आत्माना गुणो आत्माथी बहार नथी रहेता, तेम आत्माना
दोष पण आत्माथी बहार नथी रहेता. एटले ते दोष टाळवानो ने गुण प्रगट करवानो
उपाय पण आत्मामां ज छे; बहारमां कोई उपाय नथी. एटले के बहारना पदार्थोनी
साथे कर्ता कर्मपणानी बुद्धि तो पहेले धडाके छूटी जवी जोइएे.
अहा, अंदरथी उमळको लावीने जेणे आ चैतन्यस्वरूपनी वात सांभळी,
स्वभाव प्रत्येनो उल्लासभाव जाग्यो, ते अल्पकाळे मोक्ष पाम्या वगर रहे नहीं. अहा,
बंधनथी बंधायेला नाना वाछरडाने पण ज्यां सवारमां पाणी पावा छोडे त्यां
छूटकाराना अवसरे ते आनंदथी नाची ऊठे छे. शास्त्रकारो कहे छे के अरे जीव!
अनंतकाळथी तुं बंधायेलो, तेमांथी तारा छूटकारानी ने अपूर्व आनंदनी प्राप्तिनी
वात अमे तने संभळावीए छीए, त्यां तने एम थाय के आहा! छूटकारानो अवसर
आव्यो. भवबंधनथी छूटवानो ने चैतन्यना आनंदनी प्राप्तिनो उपाय संतोए
बताव्यो.–आम ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा प्रत्ये प्रेम उल्लसी जाय, त्यां अल्पकाळे मुक्ति
थया विना रहे नहि.
* * *
सुं....द....र
मुंबईनगरीमां मंगलाचरण करतां ७–८ हजारनी मानवमेदनीमां गुरुदेवे कह्युं
के–जगतमां मंगळ वस्तु तो शुद्धआत्मा छे. ते आत्माना श्रद्धा–ज्ञान करवा, तथा तेनी
वातनुं रुचिथी श्रवण करवुं ते पण मांगळिक छे, ते सुंदर छे. कुंदकुंदस्वामी समयसारनी
त्रीजी गाथामां कहे छे के–
एयत्त णिश्चयगओ समओ सव्वस सुंदरो लोए
एकत्व–निश्चयने प्राप्त एवा जे शुद्ध समय, शुद्धआत्मा, ते लोकमां सर्वत्र
सुंदर छे; सुंदर कहो के मंगळ कहो. वनमां वसता संत भगवान कुंदकुंदमुनि