Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ६पः
तत्पर बनी. श्रेणिक कहे छेः अरे, ए तारा गुरु तो कयारनाय सर्पने दूर फेंकीने
बीजे चाल्या गया हशे! ‘नहि राजन!’ चेलणाए कह्युं–, आत्मसाधनामां लीन
मारा गुरुने, वीतरागी जैनसंतने, शरीरनुं एवुं ममत्व होतुं नथी. तेओ एमने
एम ज बेठा हशे. नजरे जोवुं होय तो चालो मारी साथे!’
राजा अनेे राणी बन्ने त्यां जाय छे, यशोधरमुनिराज एमने एम
समाधिमां बेठा छे. राणी अति भक्तिपूर्वक सर्पने दूर करे छे. राजा तो देखीने
स्तब्ध बनी गयो....एनो द्वेष ओगळी गयो, हृदय गदगदित थइ गयुं. एवामां
ध्यान पूर्ण थतां मुनिराजे राणी अने राजा बन्नेने धर्मवृद्धिना समान
आशीर्वाद आप्या, मुनिराजनी आवी महान समता देखीने राजा श्रेणिक चकित
थइ गयोः ‘धन्य छे आ जैनमुनिराजने! धन्य छे आवा वीतरागी
जैनधर्मने!–आवा बहुमानपूर्वक पोताना अपराधनी क्षमा मांगी, राजा
जैनधर्मी थयो सम्यग्दर्शन पाम्यो.
–त्यारे चेलणाराणीनी प्रसन्नतानी तो शी वात!!
वार्ता नवमी
राणी चेलणानो धर्मप्रेम
भगवान महावीरना वखतमां मगधदेेशना महाराजा हता श्रेणिक चेटकराजानी
सुपुत्री चेलणा–के जे त्रिशलामातानी बहेन अने महावीरनी मासी थाय–तेनी साथे
राजा श्रेणिके विवाह करेला, ने ए चेलणा मगधदेशनी महाराणी बनी; परंतु एने त्यां
जराय चेन पडतुं नथी, केमके श्रेणिकराजा तो अन्यधर्मने माने छे, जैनधर्म उपर तेने
प्रेम नथी. जैनधर्मनी जाहोजलाली वच्चे ऊछरेली ए चेलणाने जैनधर्म वगर राजमां
चेन क्यांथी पडे? ते राजाने कहे छे के अरे राजन्! जैनधर्म वगरना आ राज्यने
धिक्कार छे! राजा तेने जैनधर्मने अनुसरवानी ने जिनमंदिर बंधाववा वगेरेनी छूट
आपे छे. पछी तो चेलणाराणी परम जिनभक्तिपूर्वक महान जिनालय बंधावे छे,
आनंदथी पूजनभक्ति