Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 75 of 83

background image
श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः ६६ः वैशाख सुद २
करे छे...अनुक्रमे राजाना हृदयनुं पण परिवर्तन करी नांखे छे. राजा पण अंते
जैनधर्मना द्रढश्रद्धाळु बने छे अने ज्यारे राजगृहीमां विपुलाचल पर महावीरनुं
समवसरण आवे छे त्यारे भगवानना पादमूळमां क्षायकसमकित पामीने राजा
श्रेणिक तीर्थंकर नामकर्म बांधे छे.–ने जैनधर्मना जयजयकारथी भारत गाजी ऊठे छे–
जैनधर्मनो जय हो.
वार्ता दसमी
सिंह सम्यग्दर्शन पामे छे
मुनिराजना संबोधनथी वैराग्य पामेल सिंहनी आंखोमांथी आंसु चाल्या
जाय छे ने ते सम्यग्दर्शन पामे छे.–ए सिंह कोण छे, खबर छे? ए तो भगवान
महावीरनो जीव! एना दसमा भवनो आ प्रसंग छे. विदेहक्षेत्रना तीर्थंकरनी
वाणीथी मुनिओए जाणेलुं के सिंहनो आ जीव दसमा भवे तीर्थंकर थशे.
आ बाजु ए वनराजा तो एक हरणने फाडी खाता हता; त्यां उपरथी बे
मुनिवरो ऊतर्या...ने सिंहनी सामे आवी ऊभा. सिंह तो आश्चर्यथी जोई ज रह्यो.
मुनिओए तेने संबोधीने कह्युंः अरे सिंह! अरे, आत्मा! तने आ नथी शोभतुं;
दसमा भवे तो तुं त्रिलोकनाथ तीर्थंकर थवानो छे. अरे, जगतने वीतरागी
अहिंसानो संदेश आपनारो तुं आवी हिंसामां पडयो छे! छोड रे छोड ए
भाव...जाग....जाग. ए सांभळतां ज सिंहने पूर्वभवनुं भान थाय छे,
पश्चातापथी मिथ्यात्व ओगळीने आंसु द्वारा बहार नीकळी जाय छे, ने ते
सम्यग्दर्शन पामे छे. बहुमान अने भक्तिना भावथी मुनिओने प्रदक्षिणा करे
छे....ने पछी अनुक्रमे आत्मसाधनामां आगळ वधीने तीर्थंकर महावीर थाय छे.
अहा, सिंहने सम्यक्त्वप्राप्तिनो ए प्रसंग केवो अद्भुत छे’