Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 76 of 83

background image
श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ६७ः
वार्ता अगियारमी
वैराग्यवंत हाथी
लंकानो राजा रावण...एनी पासे लाखो हाथी, तेमां सौथी मुख्य हाथीनुं
नाम त्रिलोकमंडन! राजा रावणे सम्मेदशिखर पासेना मधुवनमांथी एने पकडयो
हतो.
पछी तो राम अने रावण वच्चे मोटी लडाइ थइ...रावण मरायो; राम जीत्या; ने
त्रिलोकमंडन हाथीने लईने सौ अयोध्या आव्या. ए हाथी बहु पुण्यवान! बहु वैरागी!
ने बहु संस्कारी.
भरतने ए हाथी बहु वहालो, ने ए हाथीने पण भरत उपर घणुं वहाल,
एकवार ए हाथी उश्केराइने भाग्यो ने हाहाकार मचावी दीधो; पण भरतने
देखतां ज ते शांत थइ गयो. भरते तेने वैराग्यनो उपदेश आप्यो.
एकवार देशभूषण अने कुलभूषण नामना बे केवळी भगवंतो अयोध्या
पधार्या; रामचंद्र, लक्ष्मण, भरत अने शत्रुघ्न सौ त्रिलोकमंडन हाथी उपर बेसीने
तेमना दर्शन करवा गया. भगवंतोने देखीने चारे भाई प्रसन्न थया, हाथी पण
खुशी थयो. त्यां भगवाननो उपदेश सांभळीने भरत तो दीक्षित थया. हाथी पण
वैराग्य पाम्यो ने सम्यग्दर्शन सहित व्रत अंगीकार कर्या. एणे आभूषणो छोडी
दीधा. पंदर पंदर उपवास कर्या. ए वैरागी हाथीने नगरजनो भक्तिपूर्वक पारणुं
करावी रह्या छे.
हाथी जेवा प्राणी पण केवो धर्म साधी शके छे, ने धर्मात्मा श्रावकोने
केवो वात्सल्यभाव आवे छे–ते आपणने स्वाध्याय मंदिरनुं आ चित्र उपदेशी
रह्युं छे.