श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
ः ६८ः वैशाख सुद २
वार्ता बारमी
२६ राजपुत्रोनी साथे वज्रबाहुनो वैराग्य
राजकुमार वज्रबाहु मनोदयाराणी साथे हाथी उपर बेसीने नगरी तरफ जई
रह्या छे, साथे तेमना साळा उदयसुन्दर अने बीजा २६ राजपुत्रो छे. वनमांथी पसार
थतां थतां एकाएक वज्रबाहुनी नजर थंभी गइ...आश्चर्यथी एक झाड तरफ एकीटसे
जोई रह्या.
उदयसुन्दरे कह्युंः कुमारजी! कया देख रहे हो?
कुमारे अंगुलिनिर्देशपूर्वक कह्युंः देखो! झाड नीचे वह मुनि बिराजमान है....अहा!
कैसी अद्भुत है उनकी दशा!! धन्य है उनका जीवन!!
उदयसुन्दरे कह्युंः कुमारजी! कयांक आप पण एमना जेवा न थइ जता!
वज्रकुमारे कह्युंः वाह! भाई, हुं एज भावना भावतो हतो...तमे मारा मननी वात
जाणी लीधी; हवे मारा मनमां शुं छे ते कहो?
“मारी पण एज भावना छे”–उदयसुन्दरे कह्युं. अने बन्ने राजकुमारो
मुनिराजना चरणसमीप चाल्या....साथे छवीसेय राजपुत्रो पण चाल्या....मुनिराज पासे
दीक्षा लइने ए बधाय मुनि थइ गया...राणी मनोदया वगेरे पण संसारथी विरक्त थइ
अर्जिका थया.
धन्य धन्य ए संसारविरक्त सन्तोने.
वार्ता तेरमी
वाघण पण वैराग्य पामे छे
सुकोशल राजकुमारनो जन्म थतां ज तेने राजतिलक करीने राजा कीर्तिधरे दीक्षा
लई लीधी...एमनी दीक्षाथी आघात पामेली राणी सहदेवीने मुनिवरो प्रत्ये अणगमो
थइ गयो...ने एकनो एक कुमार पण मुनिने देखीने क्यांक मुनि न थइ जाय एवी
बीकथी