
तेणे दुष्ट हुकम कर्यो कोई मुनिने नगरीमां आववा न देवा.
कुमारे पूछयुंः माता! ए तेजस्वी नग्न महात्मा कोण छे? ने दरवान तेमने केम रोकी
रह्यो छे?
जैन मुनिराजने आ दुष्टराणी भीखारी कही रही छे.–ए सांभळीने धावमाता रडी
पडी....कुंवरे पूछतां तेणे खुलासो कर्यो केः बेटा! तारी मा जेने भीखारी कही रही छे ते
अन्य कोई नहि पण तारा पिता ज छे, ए मुनि थया छे; ने तारी माताना हुकमथी ज
दरवान तेने रोकी रह्यो छे....एक वखतना राजना मालिकने आजे नगरमां प्रवेशता
एक दरवान रोकी रह्यो छे!–रे संसार!!
दुष्ट परिणामथी मरीने वाघण थइ....ने ध्यानमां बेठेला पुत्रने (सुकोशल मुनिने)
खावा लागी....पण एनो हाथ जोतां एने जाति स्मरण थयुंः अरे! आ तो मारो
पुत्र!! पछी तो कीर्तीधर मुनिराजे तेने संबोधन करीने ए वाघणने वैराग्यनो उपदेश
आप्यो....ने ए वाघण पण धर्म पामी.
‘अभिनंदनगं्रथ’मां छापी छे. तेमां तो आ वार्ताना चित्रो पण छे. गुरुदेवनी
हीरकजयंतीनो अंक तमे जरूर जोजो एमां केटलाय सारा मजाना चित्रो छे तमने गमे
एवा केटलाय लेखो छे....गुरुदेव नानकडा हता त्यारे केवी वातचीत करता’ता–ते पण
एमां छे, ने गुरुदेवनी बा एक हालरडुं गाय छे ते पण गमशे...तमे जरूर ए ग्रंथ
वाचजो हों.