Atmadharma magazine - Ank 247
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 78 of 83

background image
श्री कानजीस्वामी–हीरकजयंती–अभिनंदन–अंक
वैशाख सुद २ः ६९ः
तेणे दुष्ट हुकम कर्यो कोई मुनिने नगरीमां आववा न देवा.
एकवार राजमहेलनी अगाशीमां ऊभो ऊभो कुमार जुए छे के नगरना
दरवाजे कोई तेजस्वी महात्मा आवी रह्या छे ने दरवान तेमने अटकावे छे. वैरागी
कुमारे पूछयुंः माता! ए तेजस्वी नग्न महात्मा कोण छे? ने दरवान तेमने केम रोकी
रह्यो छे?
कुंवरनो प्रश्न सांभळतां ज माताना मनमां ध्रासको पडयो. तेणे कह्युंः बेटा ए
तो हशे कोइक भीखारी!’ अररर! एक वखतना पोताना पतिने अने महान वीतरागी
जैन मुनिराजने आ दुष्टराणी भीखारी कही रही छे.–ए सांभळीने धावमाता रडी
पडी....कुंवरे पूछतां तेणे खुलासो कर्यो केः बेटा! तारी मा जेने भीखारी कही रही छे ते
अन्य कोई नहि पण तारा पिता ज छे, ए मुनि थया छे; ने तारी माताना हुकमथी ज
दरवान तेने रोकी रह्यो छे....एक वखतना राजना मालिकने आजे नगरमां प्रवेशता
एक दरवान रोकी रह्यो छे!–रे संसार!!
कुंवर तो आ सांभळता ज पिता पासे दोडी गयो....त्यां ने त्यां ज जिनदीक्षा
धारण करीने राजपुत्र मटीने मुनिपुत्र बन्यो....पितानो साचो वारसदार बन्यो....माता
दुष्ट परिणामथी मरीने वाघण थइ....ने ध्यानमां बेठेला पुत्रने (सुकोशल मुनिने)
खावा लागी....पण एनो हाथ जोतां एने जाति स्मरण थयुंः अरे! आ तो मारो
पुत्र!! पछी तो कीर्तीधर मुनिराजे तेने संबोधन करीने ए वाघणने वैराग्यनो उपदेश
आप्यो....ने ए वाघण पण धर्म पामी.
बस. दस वार्ता पूरी थइ....अरे, दसने बदले तेर वार्ता थइ; तमने केवी मजा
पडी! पण तमने बीजी एक वात कहुं? जुओ, आ वार्ताओ तमे वांचीने, ए वार्ता
‘अभिनंदनगं्रथ’मां छापी छे. तेमां तो आ वार्ताना चित्रो पण छे. गुरुदेवनी
हीरकजयंतीनो अंक तमे जरूर जोजो एमां केटलाय सारा मजाना चित्रो छे तमने गमे
एवा केटलाय लेखो छे....गुरुदेव नानकडा हता त्यारे केवी वातचीत करता’ता–ते पण
एमां छे, ने गुरुदेवनी बा एक हालरडुं गाय छे ते पण गमशे...तमे जरूर ए ग्रंथ
वाचजो हों.
–जय जिनेन्द्र