Atmadharma magazine - Ank 248
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : जेठ : २४९०
‘राग वखते शुद्ध आत्माना श्रद्धा–ज्ञान केम थई शके? ’
प्रश्न:– आत्मामां राग–द्वेष थता होवा छतां ते राग–द्वेष हुं नहि–एम ते क्षणे ज
केम मान्यता थाय? राग–द्वेष वखते ज राग–द्वेष रहित ज्ञानस्वभावनी श्रद्धा कई रीते
थई शके?
उत्तर:– राग–द्वेष थता देखाय छे ते तो पर्यायद्रष्टि छे, ते ज वखते जो
पर्यायद्रष्टि गौण करीने स्वभावनी द्रष्टिथी जुओ तो आत्मानो स्वभाव रागरहित ज
छे,–एनी श्रद्धाने अनुभव थाय छे. राग होवा छतां शुद्ध आत्मा ते रागथी रहित छे,–
एम ज्ञानवडे शुद्ध आत्मा जणाय छे. आत्मामां एक ज गुण नथी पण श्रद्धा–ज्ञान–
चारित्र वगेरे अनंत गुणो छे; राग–द्वेष थाय ते चारित्रगुणनुं विकारी परिणमन छे ने
शुद्धात्माने मानवो ते श्रद्धागुणनुं निर्मळ परिणमन छे तथा शुद्धात्माने जाणवो ते
ज्ञानगुणनुं निर्मळ परिणमन छे. ए रीते दरेक गुणनुं परिणमन भिन्न भिन्न कार्य करे
छे. चारित्रना परिणमनमां विकारदशा होवा छतां, श्रद्धा–ज्ञान तेमां न वळतां त्रिकाळी
शुद्ध स्वभावमां वळ्‌या, श्रद्धानी पर्याये विकाररहित आखा शुद्ध आत्मामां वळीने तेने
मान्यो छे अने ज्ञाननी पर्याय पण चारित्रना विकारनो नकार करीने स्वभावमां वळी
छे. एटले तेणे पण विकार रहित शुद्ध आत्माने जाण्यो छे. आ रीते, चारित्रनी
पर्यायमां राग–द्वेष होवा छतां श्रद्धा–ज्ञान स्व तरफ वळतां शुद्ध आत्मानी श्रद्धा तथा
ज्ञान थाय छे. राग वखते जो रागरहित शुद्ध आत्मानुं भान थई शकतुं न होय तो
कोई जीवने चोथुं–पांचमुं–छठ्ठुं वगेरे गुणस्थान के साधकदशा ज प्रगटी शके नहि अने
साधक भाव वगर मोक्षनो पण अभाव ठरे.
राग–द्वेष ते चारित्रगुणनी अवस्था छे. जो आत्मामां चारित्र सिवाय बीजा
ज्ञानादि अनंत गुणो न होय तो धर्म थई शके नहीं. केमके जे चारित्र पोते विकारमां
अटक्युं होय ते पोते विकाररहित स्वभावनो निर्णय केम करी शके? अने ते निर्णय
वगर धर्म क्यांथी थाय? माटे चारित्र सिवाय बीजा ज्ञान, श्रद्धा वगेरे गुणो छे; तेथी
चारित्रनी दशामां विकार होवा छतां ते ज वखते ज्ञानगुणना कार्यवडे शुद्धात्मानुं ज्ञान
थाय छे तथा श्रद्धागुणना कार्यवडे शुद्धात्मानी श्रद्धा थाय छे. अने ए शुद्धात्मानी श्रद्धा–
ज्ञानना जोरे स्वभावसन्मुख परिणमतां चारित्रना विकारनो पण क्रमे क्रमे नाश थतो
जाय छे, सम्यक्श्रद्धाज्ञान थतां तेनी साथे चारित्र पण अंशे शुद्ध तो थाय छे.
सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान थवा छतां