Atmadharma magazine - Ank 248
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : जेठ : २४९०
अने तेमांय मनुष्यअवतार, सत्संग, श्रावककूळ ने रत्नत्रय तथा मुनिदशानी
प्राप्ति अत्यंत दुर्लभ छे. आ रीते जगतमां प्रधान एवुं जे आत्मज्ञान ते जीवने
संसारमां सौथी दुर्लभ छे.–माटे तेनी निरंतर भावना करवी.
]
(१२) धम भवन
जांचे सुरतरू देत सुख, चिंतत चिंतारैन,
विन जांचे विन चिंतये धर्म सकल सुख देन.
धर्म सकल सुखदैन रैन–दिन भविजीवन मन भाता,
जैनधर्म वीतराग सिवा अन मत न सुहाता,
वीतराग सर्वज्ञ देव गुरु धर्म अहिंसा जानो,
अनेकान्त सिद्धांत सप्त तत्त्वनको कर सरधानो.
[कल्पतरू तो मांगतां सुख आपे छे, ने चिंतामणि चिंतवतां सुख आपे छे,
मांग्या विना के चिंतव्या विना तो ते पण सुख नथी आपता; परंतु धर्म तो वगर
मांग्ये ने वगर चिंतव्ये जीवने दिनरात सकल सुखनो दाता छे. भविक जीवोना मनमां
ते धर्म प्रिय छे. वीतराग सर्वज्ञदेव, निर्ग्रंथ गुरु, अहिंसामय वीतरागधर्म अने
अनेकान्त सिद्धांतरूप शास्त्रो, सात तत्त्वो–ए बधानी श्रद्धा करीने हे जीव! तुं धर्मने
आराध! –जेथी तने परम सुखनी प्रप्ति थशे.
]
सर्वज्ञनो धर्म सुशर्ण जाणी, आराध्य! आराध्य! प्रभाव आणी,
अनाथ एकान्त सनाथ थाशे, एना विना कोई न बांह्य स्हाशे.
भूधर कविकृत भावना द्वादश जगपरधान।
तापर इक अल्पज्ञने छंद रचे हित जान।।


अंक छापतां छापतां कलकत्ताथी समाचार मळ्‌या छे के श्री नीहालचंदजी सोगानी
एकाएक हार्टफेईलथी स्वर्गवास पामी गया छे. तेओ अवारनवार सोनगढ आवीने
लाभ लेता; हालमां ज मुंबई पंचकल्याणक महोत्सवमां पण तेओ आवेला. तत्त्वचर्चानो
तेमने प्रेम हतो. तत्त्वप्रेममां आगळ वधीने तेओ आत्महित पामे ए ज भावना.