एटलुं ज नहि, भारतना जीवोने पण ए ज मार्गे आववानी हाकल करीने अध्यात्मनी
जे महान क्रान्ति तेमणे सर्जी छे ते जैनशासनना सुवर्णपट उपर हीराना अक्षरोथी
आलेखाई गई छे. ए क्रान्तिकारनी वीरहाक सांभळीने भारतना खूणेखूणेथी जागेला
हजारो जीवोए पराधीनद्रष्टिना बंधननी बेडी तोडी नांखी छे; स्वाधीनद्रष्टिना पुरुषार्थ
पासे ‘वेठना वारा’ जेवी ओशीयाळीवृत्तिना गढ तूटी पड्यां छे....ने अध्यात्मनी एक
महान क्रान्तिना विजयनो धर्मध्वज जैनशासनना ऊंचा आकाशमां आनंदथी लहेराई
रह्यो छे. ए धर्मध्वजनी छायामां जीवनमां आध्यात्मिक आंदोलनो जगाडीने, आत्मामां
धर्मक्रान्तिद्वारा परम शान्ति प्राप्त करवी ते आपणुं कर्तव्य छे.