Atmadharma magazine - Ank 248
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९० आत्मधर्म : ३३ :
जगतना धर्म राजाए जाहेर करेलो
स्वतंत्रतानो ढंढेरो
जेम सारा राजा तरफथी प्रजाना सुख माटे अनेक प्रकारना ढंढेरा बहार पडे छे;
सारी प्रजा पोताना सुखनी, पोतानी स्वाधीनतानी वात सांभळीने प्रसन्न थाय छे ने
ए ढंढेरो प्रगट करनार राजवी प्रत्ये पण तेने बहुमान जागे छे. प्रजानी स्वाधीनतानो
के सुखनो विरोध करनार सजाने पात्र थाय छे. तेम जगतनां धर्मराजा भगवान
सर्वज्ञदेवे जगतना प्राणीओना स्वाधीनसुखने माटे स्वतंत्रतानो दिव्य ढंढेरो प्रसिद्ध
कर्यो छे के, हे जीवो! तमारी सर्व सत्ता, सर्व संपत्ति, सर्व गुणो तमारामां स्वाधीन छे,
तेमां बीजा कोईनो अधिकार के हस्तक्षेप नथी; स्वाधीनपणे तमे तमारा सुखने
भोगवो. अहा, आवो स्वतंत्रतानो ढंढेरो सांभळीने कोने खुशी न थाय? ने ए
धर्मराजा प्रत्ये कोने बहुमान न जागे!! जे आवी स्वाधीनताना ढंढेरानो विरोध करे छे
ते समस्त प्राणीओना स्वाधीनसुखनो विरोध करे छे, तेथी ते महान सजाने (एटले के
घोर संसाररूपी जेलने) पात्र छे. मुमुक्षु सज्जनोने आवी स्वाधीनतानो ढंढेरो
संभळावनार प्रत्ये परम आदर बहुमान जागे छे.
आ भरतक्षेत्रमां अढी हजार वर्ष पहेलां भगवान महावीरे, अने हालमां
विदेहक्षेत्रमां भगवान सीमंधर वगेरे तीर्थंकर भगवंतोए, आवी स्वतंत्रतानो जे ढंढेरो
दिव्यध्वनिना नादे जगतमां प्रसिद्ध कर्यो, कुंदकुंदादि महान संतोए जे ढंढेरो झीलीने
पसराव्यो, ए ज स्वाधीनताना ढंढेरानो पावन सन्देश आजे आपणने संभळावी रह्या
छे गुरु कहान! अहा, केवी स्वतंत्रता! सुखनो केवो सुंदर मार्ग! हे भाई! ए
स्वतंत्रताना सन्देशवाहक सन्तो कहे छे के तारो आत्मा, तारा गुणो, तारुं परिणमन–ए
बधुंय तारामां स्वतंत्र छे; तुं ताराथी ज परिपूर्ण छो, जगतनी गमे तेवी अनुकूळता के
प्रतिकूळता वच्चे पोते पोताना भावमां अडोलपणे टकी शके एवुं सामर्थ्य तारामां छे. –
कबुल कर एकवार तारी स्वाधीनताने–! ने जो तारा अंतरमां? त्यां केवुं सुख भर्युं छे!
बस, आवा आत्माने ओळखीने तेनो स्वाश्रय करवानुं भगवान धर्मराजा तीर्थंकरोनुं
फरमान छे. धर्मराजाना आ फरमानने जेओ नहि स्वीकारे ने पोताना अपराध बीजा
उपर ढोळशे, बीजो मने सुखी दुःखी करे एम मानशे तेओ भगवानना धर्मराज्यमां
गुनेगार गणाशे. अरे जीव! शुं तुं बाह्य पदार्थोना संयोग उपर आधार राखीने तेमांथी
सुख लेवा मांगे छे? –कदी नहि मळे तने सुख! शुं पराधीनतामां सुख होय? सुख तो
स्वाधीनतामां होय. माटे आ स्वतंत्रतानी हाकल सांभळीने जाग... स्वाधीन पुरुषार्थना
रणकारमां कोई अनेरो आह्लाद तने अनुभवाशे.