भावभीनुं वर्णन कर्युं छे–ते गुरुदेवने घणुं प्रिय छे, तेमांय उग्र पुरुषार्थप्रेरक
‘कवचअधिकार’ नुं तो तेओ वारंवार प्रवचनमां वर्णन करे छे...जे सांभळतां मुनिवरो
प्रत्येनी अतिशय भक्तिथी श्रोतानुं हृदय भींजाई जाय छे...ने हृदयसमक्ष एवुं द्रश्य खडुं
थाय छे के जाणे जंगलमां मुनिओनो समूह बिराजी रह्यो छे... तेमांथी कोईक
मुनिराजना समाधिमरणनो प्रसंग छे, अनेक मुनिवरो भक्ति अने वात्सल्यथी
मुनिसेवामां तत्पर छे...अंतसमयनी तैयारीमां मुनिने कदाचित पाणीनी वृत्ति ऊठतां
‘पा...णी’ एम बोलाई जाय छे...त्यां बीजा मुनिओ के आचार्य स्नेहथी–मीठासथी
धोधमार वैराग्यउपदेशनी धारा वरसावीने एनी पाणीनी वृत्ति तोडी नांखे छे: अरे
मुनि! अत्यारे आराधनानो ने समाधिमरणनो अवसर छे, अत्यारे तो निर्विकल्प शांत
रसना पाणी पीवानो अवसर छे...तेमां वच्चे आ वृत्ति शी!! आराधनाने याद करो,
कायर न थाव. स्वयंभूरमण दरिया भराय एटला पाणी अनंत वार पीधां.... माटे ए
वृत्ति तोडो.....तमे तो चैतन्यना निर्विकल्प अनुभवना अमृत पीनारा छो...माटे ए
निर्विकल्प आनंदना दरियामां डूबकी मारो....आम धोधमार वैराग्यनी धारा वरसावे छे
ने अनेक महा मुनिओना द्रष्टांत आपे छे...त्यां पहेला मुनि पण पाणीनो विकल्प
तोडीने पाछा स्वरूपमां ठरी जाय छे. जेम लडाईमां रक्षण माटे योद्धाओ कवच
(बख्तर) पहेरे तेम समाधिमरण टाणे आराधनानी रक्षा माटे वैराग्यना उत्तम
उपदेशथी भरपूर एवा गुरुवचनरूपी कवचनुं अलौकिक वर्णन कर्युं छे. भगवती
आराधनाना आ कवचअधिकार उपर तेमज बीजा अनेक भागो उपर गुरुदेवे प्रवचन
करेला छे. एक प्रसंगमां,–ज्यारे एक आचार्य वैराग्यथी पोतानुं आचार्यपद छोडीने
बीजा आचार्यने सोंपे छे ने संघना मुनिओ पासे क्षमा मांगीने हितोपदेश आपे छे, ने
ते वखते संघना मुनिओ पण आचार्य प्रत्ये भक्तिथी गदगद थईने परम उपकारना
उद्गारो कहे छे, तथा क्षमा मागे छे–ए वखतना ए मुनिओनां, ए गुरु–शिष्योना
परस्परना अचिंत्य वात्सल्यभावनो चितार गुरुदेवे प्रवचनमां खडो कर्यो त्यारे
श्रोताजनोनां नयनो आंसुथी भींजाई गया हता. गुरुदेव ‘भगवतीआराधना’ हाथमां
ल्ये त्यां ज मुनिवरोनुं जीवन नजरसमक्ष तरवरवा लागे छे.