ः ८ः अषाढः २४९०
तत्त्वनिर्णयनो अवसर
हे जीव! तारे जो तारुं भलुं करवुं छे तो सर्वज्ञनो अने सर्वज्ञना कहेलां तत्त्वोनो
निर्णय कर; केमके तत्त्वनिर्णय ते ज सर्व सुखनुं मूळ कारण छे. तारी बुद्धि बीजी अत्यंत
नकामी वातोनो निर्णय करवामां तो प्रवर्ते छे, अने, आत्महितना मूळ आधार
अर्हंतदेव तथा तेमणे कहेलां तत्त्वो, तेना निर्णयमां तारी बुद्धि प्रवर्तती नथी!–ए मोटुं
आश्चर्य छे.
आत्महितने माटे तत्त्वनिर्णय करवा जेटलुं ज्ञान तो तने प्राप्त थयुं छे, माटे हे
जीव! तुं आ अवसरने वृथा न गुमाव. आळस, मान वगेरे छोडीने उद्यमपूर्वक तारा
आत्माने तत्त्वनिर्णयमां लगाव. आत्मानुं स्वरूप शुं, हेय–उपादेय तत्त्वो कया? पद शुं,
अपद शुं? सर्वज्ञनुं स्वरूप शुं?–इत्यादि तत्त्वोनो यथार्थ निर्णय ते सर्व मनोरथनी
सिद्धिनो उपाय छे; अने तेनो आ अवसर छे. माटे जे प्रकारे तेनी सिद्धि थाय ते प्रथम
कर, एवी श्री गुरुनी शिक्षा छे.
साचो जैन
हे जीव! जो तारे साचो जैन थवुं होय तो जिनेन्द्र भगवाने कहेलां तत्त्वोनो
निर्णय कर. जीव अने अजीव वगेरे तत्त्वोनुं वास्तविक स्वरूप शुं छे तेना निर्णय वगर
साचुं जैनत्व होतुं नथी, अने धर्म माटेनां तेना बधा कार्यो (वैराग्य, तप, ध्यान
वगेरे) पण असत्य होय छे. माटे, आगमनुं सेवन, युक्तिनुं अवलंबन, परंपरा
गुरुओनो उपदेश अने स्वानुभव द्वारा तत्त्वनिर्णय करवो योग्य छे. भले बीजुं ज्ञान
अल्प होय तोपण, पोताना हित माटे मोक्षमार्गना प्रयोजनभूत तत्त्वोनो निर्णय तो
अवश्य करो.
आ काळे बुद्धि थोडी, आयु थोडुं, सत् समागम दुर्लभ–तेमां हे जीव! तारे ए ज
शीखवा योग्य छे के जेनाथी तारुं हित थाय,...ने जन्म–मरण मटे.
यथार्थ तत्त्वनिर्णय ते जिनत्वनी पहेली सीडी छे; माटे तत्त्वनिर्णय करीने साचो
जैन था.
(तुरतमां प्रगट थनार “रत्नसंग्रह”मांथी)