अषाढः २४९०ः ९ः
स....म....य....सा....र
[बार वर्ष पहेलांनी वैशाख वद ८ नुं प्रवचन]
[हे समयसार! तारा गूढ गंभीर रहस्योने मारा अंतरमां
परिणमावीने मने सहज शांतिनुं पान कराव.]
आजे समयसारनो दिवस छे. स्वाध्यायमंदिरमां श्री समयसारजीनी प्रतिष्ठाने
(आ २०२०नी सालमां) २६ वर्ष पूरां थइने २७मुं वर्ष बेठुं. समयसार ते
कुंदकुंदाचार्यदेवे रचेलुं, अलौकिक, जैन दर्शनना मर्मरूप शास्त्र छे. लगभग संवत् ४९मां
कुंदकुंदाचार्य थया, तेओ दिगंबर संत हता, छठ्ठा–सातमा गुणस्थाननी दशा अंतरमां
प्रगटी हती, ते पंचपरमेष्ठीमां भळ्या हता. तेओ भगवान सीमंधर परमात्मा पासे
महाविदेहमां गया हता. तेमने भगवाननो विरह पडयो. अरेरे! वीर परमात्मानी
हाजरी नहि, साक्षात् तीर्थंकरनो योग नहि. सीमंधर परमात्मा याद आव्या. तेओ
अहींना आचार्य हता. ते वखतना शासनमां तेओ मुख्य आचार्य हता. एक वखत
तेमने तीर्थंकरोना विरहनो परिताप थयो अने...
रे! रे! सीमंधर नाथना विरहा पडया आ भरतमां...
एवा विचारनी श्रेणीमां चडया त्यां महाविदेहमां जवानो योग बन्यो. अत्यारे
महाविदेहमां जे सीमंधर परमात्मा बिराजे छे ते ज सीमंधर परमात्मा ते वखते
बिराजता हता. त्यां कुंदकुंद प्रभु गया अने आठ दिवस भगवाननी वाणी सांभळी;
त्यां ज्ञाननी निर्मळता घणी वधी गइ. त्यां आठ दिवस रहीने पाछा भरते पधार्या,
त्यार पछी समयसारादि महान परमागमो रच्यां....साक्षात् आत्मानो अनुभव, प्रत्यक्ष
भगवाननो भेटो अने मुनिदशाना चारित्रमां झूलतां झूलतां तेमणे आ अलौकिक
शास्त्रो रच्यां छे. अनंतकाळथी तत्त्व समजवुं रही गयुं छे ते आमां समजाव्युं छे. बीजां
घणां शास्त्रोमां तेवुं रहस्य रहेलुं छे, पण समयसार तो तेमां सर्वोत्कृष्ट छे.
अहो! आवुं अलौकिक सर्वोत्कृष्ट शास्त्र आ समयसार छे. तेनी प्रतिष्ठानो
आजे दिवस छे. तेना मांगलिकमां कहे छे के–
नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते ।
चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावांतरच्छिदे।।