Atmadharma magazine - Ank 249
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः १०ः अषाढः २४९०
अहो! आत्मानी शांतिना पंथे विचरनारा आत्माओने मांगलिक एवो आ
श्लोक छे. अप्रतिहत भावे शुद्धात्माने नमस्कार छे. आचार्यदेव पोते साधक छे,
स्वर्गमां जइ त्यांथी मनुष्य थइ मुक्ति पामवाना छे, तेमणे आ अप्रतिहत
मांगलिक कर्युं छे.
अहो! चैतन्यनुं केवुं स्वरूप वर्णवे छे? हुं समयसारने नमस्कार करुं छुं.
समयसार एटले शुद्ध आत्मा! जडकर्म ने भावकर्मथी रहित जेनुं स्वरूप छे एवा शुद्ध
आत्माने हुं नमस्कार करूं छुं. अत्यारे आत्मानुं एवुं शुद्ध स्वरूप छे तेने ओळखीने
तेनो ज आदर करुं छुं, ते सिवाय बीजाने आदरतो नथी. शरीर, जडकर्म के संसार
तेनाथी आत्मा रहित छे. अत्यारे पण शुद्ध स्वभावनी द्रष्टिए आत्मामां शरीर–जडकर्म
के संसार नथी. एक समयनी पर्यायमां जे विकार छे ते त्रिकाळी आत्मानुं स्वरूप नथी.
आवा शुद्ध आत्माने नमस्कार करवा–तेनी रुचि–ज्ञान करीने तेमां एकाग्र थवुं ते
मांगळिक छे. त्रिकाळी चैतन्य स्वरूपने ज्ञानमां लइने, एक समयना संसारने ‘अछतो’
करे छे अने अनादिथी जे स्वभाव सत् छे, पण जे अनादिथी श्रद्धामां लीधो न हतो
तेने श्रद्धामां लइने नमस्कार करे छे.
जुओ समयसार एटले शुद्ध आत्मा! ते आत्मा संसार रहित छे. ने शरीर, कर्म
तो पर पदार्थ छे. आवा शुद्ध आत्माने लक्षमां लइने तेनी रुचि अने तेने नमस्कार
करवा. हुं एक आत्मा छुं, हुं सिद्ध थवा माटे नीकळ्‌यो छुं, मारा आत्मामां संसार नथी–
आम कोण कहे? आत्माना शुद्ध स्वभावने द्रष्टिमां लीधो छे ते जीव कहे छे के मारा
स्वरूपमां संसार नथी, कर्म वगेरे नथी. एक समयनो विकार ते हुं नथी. पर्यायमां ते
होवा छतां तेने स्वभावद्रष्टिमां अछतो करे छे. ज्यां चैतन्य भगवान पोतानुं मांगलिक
करवा ऊठयो त्यां ते कहे छे के जे संसारने हुं टाळवा मागुं छुं ते मारा स्वरूपमां नथी.
जो संसार पोताना स्वरूपमां होय तो टळे नहि. संसार क्यां छे? विकारी पर्यायमां
संसार छे, पण बहारमां संसार नथी, ने स्वभावमां पण संसार नथी. पर वस्तु तो
आत्माना स्वभावमां नथी. पण परनी ममता करे छे ते ज संसार छे, ने स्वभावनी
द्रष्टिमां ते संसारनो पण अभाव छे.
मारो संसार परमां नथी, ने संसार मारो स्वभाव नथी. हुं
आनंदकंदस्वभाव छुं ने संसार हुं नथी. जेने संसार दुःखदायक लाग्यो होय ने तेने
टाळीने मुक्त थवानी जिज्ञासा होय ते एम विचारे छे के अहो! हुं शुद्ध आत्मा छुं.
क्षणिक ममत्वनी लागणी ते त्रिकाळ चैतन्यतत्त्वमां नथी. त्रिकाळ शुद्धस्वभावने
चूकीने पर ते हुं एवी मान्यता ते संसार छे. जे संसारने पोतानुं स्वरूप माने ते
तेनाथी केेम छूटे? माटे