छे! के जगतमां सत्भावरूप पदार्थ छे, स्वभावभूत वस्तु छे, अभावरूप नथी. जुओ,
पोताने आवा चैतन्य तरफ वाळीने आचार्यदेव मंगलिक करे छे.
आवा भावरूप शुद्ध आत्माने आदरवो तेनुं नाम धर्म छे.
जगतने कहे छे के अरे जीवो! जे पंथे अमे जई रह्या छीए ते पंथ आ रह्यो.
जे यथानुभूत मार्ग तेना प्रणेता अमे आ ऊभा. तेम समयसारमां आचार्यदेव
कहे छे के हे जीवो! छठ्ठा सातमा गुणस्थाने शुद्धआत्माना अनुभवनी दशा केवी
होय तेवी दशा जो तमारे प्रगट करवी होय तो तेना प्रणेता अमे आ प्रत्यक्ष रह्या!
अमे अमारा आत्मामां शुद्धात्माना अनुभवनी एवी दशा प्रगट करीने जगतने
कहीए छीए के अहो! शुद्ध स्वभावनी दशा प्रगट करवी होय तो तेनो उपाय आ
ज छे. शुद्धसत्तास्वरूप आत्मानी प्रतीत करो! तेनुं बहुमान करीने तेमां नमो .
बहारना पदार्थोथी तो आत्मा त्रिकाळ जुदो छे, ने पुण्य–पापरूप जे एक
छुं–आम शुद्धआत्माने प्रतीतमां लेवो. अंदर अंधारुं देखाय, बहारमां जड
देखाय–पण भाई! ते बन्नेने देखनारो तुं कोण छो? तुं अंदर चैतन्य सत्तामय
जाणनार छे. अंधाराने देखनारो पोते अंधारारूपे नथी, अंधाराने जाणनारो पोते
चैतन्यप्रकाशरूप छो. अहो! आवी शुद्ध सत्तारूप चैतन्य वस्तुनी अंतरमां प्रतीत
करो. पर्यायबुद्धि छोडीने शुद्ध वस्तुने प्रतीतमां ल्यो.