Atmadharma magazine - Ank 249
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः १२ः अषाढः २४९०
छे! के जगतमां सत्भावरूप पदार्थ छे, स्वभावभूत वस्तु छे, अभावरूप नथी. जुओ,
पोताने आवा चैतन्य तरफ वाळीने आचार्यदेव मंगलिक करे छे.
‘भाव’ छे एटले के शुद्ध आत्मा सदा ‘छतो’ पदार्थ छे, तेमां संसार
अभावरूप छे. चैतन्य भगवानमां परनो अभाव छे. चैतन्यपणे पोते भावरूप छे.
आवा भावरूप शुद्ध आत्माने आदरवो तेनुं नाम धर्म छे.
दरेक आत्मा आवा शुद्ध स्वभावे त्रिकाळ छे, शुद्ध सत्तारूप छे, पर्यायमां एक
समयनो विकार छे ते स्वभावमां असत् छे. आवा शुद्ध स्वभावने बतावीने संतो
जगतने कहे छे के अरे जीवो! जे पंथे अमे जई रह्या छीए ते पंथ आ रह्यो.
श्री प्रवचनसारमां आचार्यदेव कहे छेः–जे जीव दुःखथी मुक्त थवानो अर्थी
होय ते विशुद्ध ज्ञानदर्शनप्रधान श्रामण्यने अंगीकृत करो....तेने अंगीकार करवानो
जे यथानुभूत मार्ग तेना प्रणेता अमे आ ऊभा. तेम समयसारमां आचार्यदेव
कहे छे के हे जीवो! छठ्ठा सातमा गुणस्थाने शुद्धआत्माना अनुभवनी दशा केवी
होय तेवी दशा जो तमारे प्रगट करवी होय तो तेना प्रणेता अमे आ प्रत्यक्ष रह्या!
अमे अमारा आत्मामां शुद्धात्माना अनुभवनी एवी दशा प्रगट करीने जगतने
कहीए छीए के अहो! शुद्ध स्वभावनी दशा प्रगट करवी होय तो तेनो उपाय आ
ज छे. शुद्धसत्तास्वरूप आत्मानी प्रतीत करो! तेनुं बहुमान करीने तेमां नमो .
पहेलेथी ज आवो स्वभाव नक्की करो.
बहारना पदार्थोथी तो आत्मा त्रिकाळ जुदो छे, ने पुण्य–पापरूप जे एक
समयनो संसार ते पण मारा स्वरूपमां नथी. हुं एक चैतन्यसत्तास्वरूप शुद्धवस्तु
छुं–आम शुद्धआत्माने प्रतीतमां लेवो. अंदर अंधारुं देखाय, बहारमां जड
देखाय–पण भाई! ते बन्नेने देखनारो तुं कोण छो? तुं अंदर चैतन्य सत्तामय
जाणनार छे. अंधाराने देखनारो पोते अंधारारूपे नथी, अंधाराने जाणनारो पोते
चैतन्यप्रकाशरूप छो. अहो! आवी शुद्ध सत्तारूप चैतन्य वस्तुनी अंतरमां प्रतीत
करो. पर्यायबुद्धि छोडीने शुद्ध वस्तुने प्रतीतमां ल्यो.
द्रव्यथी शुद्ध सत्तारूप वस्तु छे (भावाय).
गुणथी चित् स्वभाववाळो छे (चित्स्वभावाय). अने
पर्यायथी सर्वभावोने जाणनारो छे (सर्वभावांतरच्छिदे).