निर्मळ पर्याय क्यांथी आवी? के ज्ञान स्वभावी वस्तुमांथी ज परिणमती–परिणमती ते
दशा प्रगटी छे. बहारमांथी के पुण्य–पापमांथी आवी नथी.
बधाना गुणनो विश्वास करे पण आत्मा चैतन्य स्वभावी वस्तु छे, ते बधानो
जाणनार छे तेनाथी दुःख टळे ने सुख मळे,–एेवो विश्वास कर्यो नथी. पण स्वभाव
सामर्थ्यनो विश्वास करीने तेनो आदर करवो, तेमां नमवुं–परिणमवुं तेनुं नाम मांगळिक
छे. बधाने जाणुं एेवो गुण मारामां छे–एम पोताना गुणनो विश्वास करे तो संसार
तरत मटी जाय, ने मोक्षमार्ग प्रगटी जाय.
धर्ममूर्ति आत्मानी प्रतीत करीने तेनां गाणां गावा ऊभो थयो, तेमां हवे भंग
पडशे नहि. मारा स्वभाव सिवाय बीजा कोइनो आदर करुं नहि. आवी अमारा
कुळनी वट छे. हे तीर्थंकरो! तमे जे कुळमां थया ते ज कुळनो हुं छुं. जे वाटे
तीर्थंकरो विचर्या ते ज पंथे अमे विचरनारा छीए. हे नाथ! तारी ने मारी
चैतन्यजात एक ज छे. में पण एवा शुद्ध चैतन्यने मान्यो छे अने तेनो ज आदर
करीने मोक्षमार्गे चाल्यो आवुं छुं. मारा चैतन्यकुळनी आवी रीत छे. हे नाथ!
चिदानंदस्वभाव परिपूर्ण छे ते सिवाय बीजा कोइना आश्रयथी हवे लाभ मानुं
नहि. अमे आत्मा छीए, अमारो चित्स्वभाव छे, गुणगुणी जुदा नथी. बन्ने
त्रिकाळ छे, तेमांथी ज ज्ञाननी पर्याय खीले छे. ज्ञान बहारमांथी नथी आवतुं,
पण अंदर स्वभाव भर्यो छे तेमांथी ज ते प्रगटे छे.
धर्मनी क्रिया छे. आवी क्रियाने जे माने नहि तेने वस्तु ज सिद्ध थती नथी. अहो!
आत्मा पोते पोताथी ज पोताने जाणे छे. शरीर, समोसरण ने तीर्थंकरोनी हाजरी
वखते पण ते कोइना कारणे भगवान आत्मा प्रकाशमान थतो नथी, ते वखते पण
पोते पोताना अंतरमां स्वानुभवरूपी क्रियाथी ज प्रकाशमान थाय छे.