Atmadharma magazine - Ank 249
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः अषाढः २४९०
जुओ, आजे आ समयसारनो दिवस होवाथी समयसारनुं मांगलिक कर्युं.
अंदरमां चैतन्य स्वभावनी सन्मुख थइने निर्विकल्प अनुभवनी जे क्रिया छे तेना वडे
आत्मा प्रगट थाय छे. ए सिवाय बीजी कोई रीते आत्मा प्रगट थतो नथी.
अंतर स्वभावनी स्वानुभवरूपी क्रिया वडे ज आत्माने धर्म थाय छे.
सम्यक्श्रद्धा, सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र ते त्रणेय आत्मानी स्वानुभवरूपी क्रियाथी ज
प्रकाशमान थाय छे. आ सम्यक्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानरूप स्वानुभूतिनी क्रिया नारकी
पण करी शके छे. स्वर्गना देवो ने तिर्यंचो पण करी शके छे. आठ वर्षना बाळकोने पण
आवी स्वानुभुतिनी क्रिया थाय छे. नरकमां पडेला असंख्य नारकी जीवो देहद्रष्टि छोडीने
अंदरना चिदानंद परमात्माने द्रष्टिमां लइने आवी स्वानुभूतिनी क्रिया करे छे.
सम्यग्द्रष्टि देडकुं पण एवी क्रिया करे छे. हुं देडकुं नथी, हुं नारकी नथी, हुं तो शुद्ध चैतन्य
परमात्मा छुं–एम द्रष्टिमां लइने ते जीवो शुद्ध स्वभावनी अनुभूतिनी क्रिया करे छे.
आवी क्रिया ते धर्म छे. ते महा मांगळिक छे.
अरे जीव! तुं एकवार आवा सतनुं यथार्थ श्रवण तो कर, श्रवण करीने
अंदरमां नक्की तो कर के अंतरमां केवी वस्तु छे? अंदरमां शुद्ध वस्तु छे तेना ज
आश्रयथी धर्म थाय छे. पहेलां एवी रुचि कर तो वीर्य तेने अनुसरीने अंतर्मुख
वळे. अंतर्मुख स्वभावथी ज लाभ छे एवी रुचि करे तो वीर्यनी गति अंतरमां
वळ्‌या विना रहे नहि.
चैतन्यमूर्ति आत्मानो स्वभाव केवो छे? भले वर्तमान पर्यायमां थोडुं जाणवानी
ताकात होय, पण तेनो स्वभाव सर्व भावोने जाणवानो छे. ज्ञानमां एकाग्रतानी क्रिया
करतां करतां सर्वज्ञ थाय तेवी तेनी ताकात छे. आत्मामां सर्वज्ञ थवानी ताकात न माने
ते मोटो नास्तिक छे, तेने कहे छे के अरे आत्मा! अंतर स्वभावनी एकाग्रतानी क्रिया
वडे पूरा संसारने शोषवी नाखीने सर्वज्ञ थवानी तारामां ताकात छे. अनंता
आत्माओए अंतरनी स्वानुभूतिरूप क्रिया वडे सर्वज्ञ परमात्मदशा प्रगट करी छे.
अंतरना चैतन्यस्वभावमां द्रष्टि मूकीने जे एकाग्र थाय ते सर्वज्ञ परमात्मा थया विना
रहे नहि. आ प्रमाणे इष्टदेवने अने पोताना शुद्ध आत्माने ओळखीने तेने नमस्कार
कर्या ते अपूर्व मांगळिक छे.
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