आत्मा प्रगट थाय छे. ए सिवाय बीजी कोई रीते आत्मा प्रगट थतो नथी.
प्रकाशमान थाय छे. आ सम्यक्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानरूप स्वानुभूतिनी क्रिया नारकी
पण करी शके छे. स्वर्गना देवो ने तिर्यंचो पण करी शके छे. आठ वर्षना बाळकोने पण
आवी स्वानुभुतिनी क्रिया थाय छे. नरकमां पडेला असंख्य नारकी जीवो देहद्रष्टि छोडीने
अंदरना चिदानंद परमात्माने द्रष्टिमां लइने आवी स्वानुभूतिनी क्रिया करे छे.
सम्यग्द्रष्टि देडकुं पण एवी क्रिया करे छे. हुं देडकुं नथी, हुं नारकी नथी, हुं तो शुद्ध चैतन्य
परमात्मा छुं–एम द्रष्टिमां लइने ते जीवो शुद्ध स्वभावनी अनुभूतिनी क्रिया करे छे.
आवी क्रिया ते धर्म छे. ते महा मांगळिक छे.
आश्रयथी धर्म थाय छे. पहेलां एवी रुचि कर तो वीर्य तेने अनुसरीने अंतर्मुख
वळे. अंतर्मुख स्वभावथी ज लाभ छे एवी रुचि करे तो वीर्यनी गति अंतरमां
वळ्या विना रहे नहि.
करतां करतां सर्वज्ञ थाय तेवी तेनी ताकात छे. आत्मामां सर्वज्ञ थवानी ताकात न माने
ते मोटो नास्तिक छे, तेने कहे छे के अरे आत्मा! अंतर स्वभावनी एकाग्रतानी क्रिया
वडे पूरा संसारने शोषवी नाखीने सर्वज्ञ थवानी तारामां ताकात छे. अनंता
आत्माओए अंतरनी स्वानुभूतिरूप क्रिया वडे सर्वज्ञ परमात्मदशा प्रगट करी छे.
अंतरना चैतन्यस्वभावमां द्रष्टि मूकीने जे एकाग्र थाय ते सर्वज्ञ परमात्मा थया विना
रहे नहि. आ प्रमाणे इष्टदेवने अने पोताना शुद्ध आत्माने ओळखीने तेने नमस्कार
कर्या ते अपूर्व मांगळिक छे.