जे अज्ञानी एम माने के परने सुखी–दुःखी करवा ते
मारुं कार्य,–अने शुभाशुभ अपराधभाव ते मारा
उपयोगनुं कार्य–एम पर भावरूपी अपराधना
कर्तृत्वने पोतानो धंधो माने ते चोर आ संसाररूपी
जेलना बंधनथी केम छूटे?
मिथ्याद्रष्टिनो मिथ्यात्वभाव ते ज मुख्य बंधनुं कारण छे. मिथ्यात्वने लीधे आत्मा
परभावमां एकपणानी बुद्धिथी परिणमतो थको, देहादिनी के पर जीवोनी क्रियाने हुं
करुं एम मानतो थको, बंधाय छे. हुं बीजा जीवोने बांधुं के हुं बीजा जीवोने छोडुं,–
अथवा हुं बीजा जीवोने दुःखी करुं, के हुं बीजा जीवोने सुखी करुं–आवी अज्ञानीनी
जे मिथ्याबुद्धि छे ते निरर्थक छे; निरर्थक एटला माटे छे के तेनी मान्यता प्रमाणे
वस्तु जगतमां नथी. जगतना जीवो तो पोताना सम्यग्दर्शनादिना अभावने लीधे
पोताना अज्ञानभावथी स्वयं बंधाय छे, अने ए ज रीते तेओ अज्ञाननो अभाव
करीने, सम्यग्दर्शनादिरूप मोक्षमार्गनी साधना वडे स्वयमेव मुक्त थाय छे; बीजो
तेने शुं करे?
कार्य तेनामां कांई ज आवतुं नथी तेथी तारो अभिप्राय निरर्थक छे, मिथ्या छे ने ते तने
बंधनुं कारण छे.
पडतो नथी, तारा अभिप्रायनुं कार्य तेनामां तो कांइ ज आवतुं नथी, तेथी तारो
अभिप्राय निरर्थक छे–मिथ्या छे, अने ते तने बंधनुं कारण छे.