Atmadharma magazine - Ank 249
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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अषाढः २४९०ः १पः
अज्ञानीनो मिथ्या अभिप्राय
जेम कोइ चोर एम कहे के चोरी करवी ए ज
मारो धंधो....तो ते जेल–बंधनमांथी क्यारे छूटे?–तेम
जे अज्ञानी एम माने के परने सुखी–दुःखी करवा ते
मारुं कार्य,–अने शुभाशुभ अपराधभाव ते मारा
उपयोगनुं कार्य–एम पर भावरूपी अपराधना
कर्तृत्वने पोतानो धंधो माने ते चोर आ संसाररूपी
जेलना बंधनथी केम छूटे?
(समयसार बंध–अधिकार उपरना प्रवचनोमांथी)
आ ज्ञानस्वरूप आत्मा खरेखर स्वभावथी तो अबंध छे; पण ते पोतानुं
ज्ञानस्वरूप भूलीने, उपयोगने रागमां तन्मय करतो थको, अज्ञानथी बंधाय छे.
मिथ्याद्रष्टिनो मिथ्यात्वभाव ते ज मुख्य बंधनुं कारण छे. मिथ्यात्वने लीधे आत्मा
परभावमां एकपणानी बुद्धिथी परिणमतो थको, देहादिनी के पर जीवोनी क्रियाने हुं
करुं एम मानतो थको, बंधाय छे. हुं बीजा जीवोने बांधुं के हुं बीजा जीवोने छोडुं,–
अथवा हुं बीजा जीवोने दुःखी करुं, के हुं बीजा जीवोने सुखी करुं–आवी अज्ञानीनी
जे मिथ्याबुद्धि छे ते निरर्थक छे; निरर्थक एटला माटे छे के तेनी मान्यता प्रमाणे
वस्तु जगतमां नथी. जगतना जीवो तो पोताना सम्यग्दर्शनादिना अभावने लीधे
पोताना अज्ञानभावथी स्वयं बंधाय छे, अने ए ज रीते तेओ अज्ञाननो अभाव
करीने, सम्यग्दर्शनादिरूप मोक्षमार्गनी साधना वडे स्वयमेव मुक्त थाय छे; बीजो
तेने शुं करे?
हे भाई, जीव ज्यां पोताना अज्ञानथी ज बंधाय छे, त्यां तेने बांधवानो
अभिप्राय तुं कर के न कर तेथी सामामां तो कांइ फेर पडतो नथी, तारा अभिप्रायनुं
कार्य तेनामां कांई ज आवतुं नथी तेथी तारो अभिप्राय निरर्थक छे, मिथ्या छे ने ते तने
बंधनुं कारण छे.
ए ज रीते जीव ज्यां पोताना सम्यग्दर्शनादि मोक्षमार्गना पुरुषार्थ वडे मुक्त
थाय छे, त्यां तेने मुक्त करवानो अभिप्राय तुं कर के न कर तेथी सामामां तो कांई फेर
पडतो नथी, तारा अभिप्रायनुं कार्य तेनामां तो कांइ ज आवतुं नथी, तेथी तारो
अभिप्राय निरर्थक छे–मिथ्या छे, अने ते तने बंधनुं कारण छे.