Atmadharma magazine - Ank 249
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः १६ः अषाढः २४९०
जे जीव अज्ञानभावमां वर्ते छे ते स्वयमेव पोताना अज्ञानथी बंधाय छे,
त्यां बीजा लाख जीवो पण तेने छोडाववानो अभिप्राय करे–तोपण तेने बंधनथी
छोडावी शके नहि, अने जे जीव सम्यक्त्वादि ज्ञानभावमां वर्ते छे ते स्वयमेव
पोताना ज्ञान वडे ज बंधनथी छूटे छे त्यां बीजा लाख जीवो पण तेने बांधवानो
अभिप्राय करे–तो पण तेने बंधनथी बांधी शके नहि, तेने मुक्त थतो कोइ रोकी
शके नहि.
माटे हे जीव! तुं तारा आत्माने ज्ञानस्वरूपी ज जाण. पर जीवने बांधे के
छोडावे, सुखी–दुःखी करे एवुं कर्तृत्व तारामां नथी. तुं जगतनो ज्ञाता, एने बदले
परनो कर्ता थवा जइश तो तुं दुःखी थइश.
* तारो बांधवानो अभिप्राय हशे तो पण जो सामा जीवमां अज्ञान नहि होय
तो ते नहि बंधाय.
* तारो बांधवानो अभिप्राय नहि होय तोपण जो सामा जीवमां अज्ञान हशे
तो ते बंधाशे.
* तारो मुक्त करवानो अभिप्राय हशे तो पण जो सामा जीवमां मोक्षमार्ग नहि
होय तो ते नहि छूटे.
* तारो मुक्त करवानो अभिप्राय नहि होय तोपण जो सामा जीवमां मोक्षमार्ग
हशे तो ते मुक्त थशे.
आ रीते सामा जीवने बांधवानो के छोडवानो तारो अभिप्राय होय के न
होय, परंतु सामा जीवो तो स्वयमेव तेना भावथी ज बंधाय छे अगर मुकाय छे–
तो तारी मान्यताए तेमां शुं कर्युं? तेने बांधवानी के छोडवानी तारी मान्यता तो
नकामी गई. निरर्थक थइ, मिथ्या थइ. माटे छोड ए मान्यता....ने ज्ञानस्वभावमां
तारी बुद्धि जोड.
ए प्रमाणे बांधवा–छोडवानी जेम मरण के जीवन वगेरे बधाय अशुभ के शुभ
कर्तृत्वना अभिप्रायोमां पण मिथ्यापणुं ज छे.
हुं परने सुखी करुं–बंधनथी छोडावुं–एवो शुभ अभिप्राय पण अज्ञानथी
भरेलो छे ने हुं परने दुःखी करुं–बंधनथी बांधुं–एवो अशुभ अभिप्राय पण अज्ञानथी
भरेलो छे. आ रीते शुभ अशुभना भेदनी मुख्यता नथी पण बन्नेमां जे परना
कर्तृत्वनो मिथ्या अभिप्राय छे ते ज बंधननुं मुख्य कारण छे.