Atmadharma magazine - Ank 249
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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राजीमति वैराग्य
जादवकूळनो जोगी नेमकुमार विवाह प्रसंगे वैराग्य
पामी ज्यारे रथ पाछो फेरवी गीरनार पर चाल्यो जाय छे....ने
राज्यमां हाहाकार मची जाय छे, त्यारे राजकुमारी राजुलनी शी
दशा थइ हशे? शुं ए आक्रंद करीने बेसी रही हशे?–
ना....ना....ए तो वीरांगना हती. जो नेमकुमारनुं हृदय
वैराग्यथी भरेलुं हतुं तो राजीमतीनुं हृदय पण जैनधर्मथी
धबकतुं हतुं.....एणे पण संयममार्ग अंगीकार कर्यो....ए प्रसंगे
तेना पिताजी साथे तेने केवो संवाद थाय छे ते अहीं रजु कर्यो
छे. राजुल–बाबुलनो आ संवाद ज्यारे ज्यारे गवातो त्यारे
श्रोताजनो वैराग्यमुग्ध बनी जता....परंतु.....पोतानी खास
हलकथी आ संवाद गाइने श्रोताजनोने मुग्ध बनावनारो
अजमेरनो ए गायक आजे आपणी वच्चे नथी....आ संवाद
अचूक एनुं स्मरण करावे छे...
]
(रागः भरथरी दोहरानो)
राजुलःजोग धरूंगी....बाबुल हट तजो...
झुठा है संसार....बाबुल हट तजो....
पिताः जोग विसारो....बेटी राजमती....
मत जाओ गीरनार....बेटी राजमती....
राजुलः ये संसार असार है बाबुल....
मोह जाल दुःखभार....बाबुल हट तजो...
पिताःऔर ढुंढाउं वर अति सुंदर...
धन वैभव बलकार....बेटी राजमती...