राजुलः पति सति के एक ही होता...
और पिता सुत भ्रात...बाबुल हट तजो
पिताः जब लग सात फिरे नहीं फेरे....
तब लग कुंवारी मान....बेटी राजमती....
राजुलः ये सब थोथीं बातें बाबुल....
कूल मरियाद विचार....बाबुल हट तजो....
पिताः जीवनमें सुखभोग भोग कयों....
दे रही मूढ विसार....बेटी राजमती....
राजुलः भोग रोगका घर है बाबुल...
भोग नरक को द्वार....बाबुल हट तजो....
पिताः ये यौवन ये रूप संपदा....
मिले न वारंवार....बेटी राजमती....
राजुलः हाड मांस पर चाम चमक है....
क्षनमें विनसनहार....बाबुल हट तजो...
पिताः कया यही है धर्म सुताका....
करे पितासें राड...बेटी राजमती....
राजुलः राड नहीं, है धर्म सतीका...
हितकर धर्म चितार....बाबुल हट तजो....
पिताः कठिन जोग तप त्याग है बेटी...
फिरसे सोच विचार....बेटी राजमती...
राजुलः धन ‘सौभाग्य’ मिला संयमका....
सफल करुं पर्याय....बाबुल हट तजो....
पिताः धन्य है तेरी द्रढता बेटी....
जाओ खुशी गीरनार....देवी राजमती....