Atmadharma magazine - Ank 249
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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अषाढः २४९०ः २१ः
तेने भोगववानो भाव ते आनंद ज छे, ते सुखनुं ज घर छे.
भगवान आत्मा
* आत्मा छे ते भगवान छे. भले एने पोताना स्वरूपनी खबर नथी, तो पण एनुं
भगवानपणुं मटी गयुं नथी. पोताने भगवान स्वरूपे ओळखे ते भगवान थाय.
भव भ्रमणनो अंत
* जो भाई, तारे भव भ्रमणनो अंत करवो होय तो, अपूर्व सत्समागमे आ
आत्मानो अपूर्व स्वभाव छे तेने तुं होंशपूर्वक समज. वारंवार तेनो ज अभ्यास
अने मंथन कर. एम करवाथी जरूर तारा भव भ्रमणनो अंत आवी जशे.
नहि तृष्णा जीव्या तणी, मरणयोग नहि क्षोभ;
महा पात्र ते मार्गना, परम योग जितलोभ.
* जेवी रुचि तेवो पुरुषार्थ. ‘रुचि अनुयायी वीर्य’ आ चैतन्यस्वरूप आत्मानी
वात पण जेणे प्रीतथी सांभळी छे ते भव्य अवश्य भविष्यमां मोक्ष पामे छे.
आत्मानुं जीवन
* आत्मामां ‘जीवन’ शक्ति छे, पोताना चैतन्य प्राणने धारण करीने आ जीव
सदा जीवी रह्यो छे. जीव सदा आखे आखो जीवतो छे, ते कदी पोतानी चेतनाने
छोडतो नथी, तेथी तेने कदी मरण नथी. जीव कोइ शरीर वगेरेेना आधारे
जीवतो नथी, पण ज्ञानथी ज जीवे छे. आत्मानी जीवन शक्तिने ओळखे तेने
साचुं आत्मजीवन प्राप्त थाय.
प्रभुता
* आत्मामां अनंत महिमारूप प्रभुत्व शक्ति छे. आत्माना गुणने बगाडवा कोई
समर्थ नथी. आत्मा उपर कोईनी सत्ता चालती नथी, पोते ज पोतानो प्रभु छे.
जे पोतानी प्रभुताने स्वीकारे ते पोते पोताना अनंत प्रभुत्वने पामे छे.
* आत्माना परम पारिणामिक स्वभावनो महिमा करवो. ते स्वभावमांथी ज बधी
निर्मळ पर्यायो आवे छे. सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धदशा सुधीनी बधी निर्मळ
पर्यायो प्रगटी जाय छे; माटे तेनो महिमा तेनी रुचि ने तेमां सन्मुख थइने
लीनता ए ज आत्मार्थी जीवोनुं कर्तव्य छे.
* आ मनुष्य जन्म पामीने आत्मा समजवाना अतिदुर्लभ टाणां आव्या छे. त्यारे
ऊंघवानो वखत नथी. जाग, अने आत्मानुं भान कर!
* अनंत–अनंतवार आ जीव मनुष्यपणुं पाम्यो अने अनंतवार पंचमहाव्रतनो
पाळनारो थयो, एवा महान प्रशस्त शुभराग अनंतवार आ जीवे कर्या पण
आत्मा शुद्ध स्वभावी शुं चीज छे, सर्व पर चीजथी निराळो, कर्मसंबंध रहित
छे, तेना ज्ञान वगर