Atmadharma magazine - Ank 249
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः २२ः अषाढः २४९०
अनादिना जन्म–मरण टळ्‌या नहि; अने ज्यां सुधी साचुं भान नहि करे त्यां
सुधी जन्म मरण टळशे नहीं.
* सम्यक्दर्शननी प्राप्ति ए ज मनुष्य जीवननी सार्थकता छे.
* जो जीवो सुखी होय तो “इन्द्रियो आदिथी सुख मेळवुं” एवी पांच इन्द्रियना
विषयनी इच्छा थाय ज केम? माटे इन्द्रियविषयो तरफ जेनुं वलण छे ते दुःखी ज छे.
* जगतना संसारी जीवो सुख शोधे छे तेथी एटलुं नक्की थाय छे के वर्तमानमां ते
सुखी नथी, दुःखी छे.
* रे, मुरख! क्षणिक देहनी खातर आत्माने न भूल; तारा मनमां एटली
तालावेली (भिन्नतानुं भान) होवुं जोइए के देह तो काले पडतो (छूटतो) होय
तो भले आजे पडो! देह मारुं स्वरूप छे ज नहीं; हुं तो अशरीरी सिद्धस्वरूप छुं.
* शरीर जे क्षणिक वस्तु छे, नाशवंत छे, अने पर छे तेना उपर आटला व्यवसाय
शा? सहज चिदानंद स्वरूप तुं छो–तेमां तारा सर्व व्यवसायने जोड.
* अहा, स्वभाव ए ज शरण छे. जगत आखुं अशरण छे.
* परिचय वगर ज्ञानी पुरुषोने ओळखवा मुश्केल छे; प्रत्यक्ष परिचय वगर
ज्ञानीओ विषे कोइ जातनो अभिप्राय करशो नहीं. ज्ञानीओनो परिचय [सत्
समागम] अने तेनी रुचि ए तत्त्वबोध पामवानुं मूळ छे.
* आ काळे ज्ञानीओनुं दर्शन अने ओळखाण कठण छे. छतां जिज्ञासुने तेओनो
जोग मली ज रहे छे.
* जैन धर्म ए कोइ वेश के वाडो नथी, पण वीतरागनुं शासन छे. वीतरागता ए ज
जैनधर्म छे. वीतरागमार्गमां रागने स्थान नथी, पछी ते साक्षात् भगवान उपरनो
होय तो पण जे राग छे ते जैनशासन नथी, ते धर्म नथी, ते मोक्षमार्ग नथी.
* आत्मा शरीरथी जुदो छे, शरीर आत्माथी जुदुं छे; बन्ने द्रव्यो जुदा होवाथी
कोइनो धर्म एकबीजाना आधारे नथी, आम होवाथी शरीरमां कांइ थाय तेथी
आत्माने कांइ लाभ के नुकशान थतुं नथी...
* स्वरूपनुं अज्ञान अने ते अज्ञानने लइने परमां सुखबुद्धि ए आत्मानी भयंकर
पामरता छे.
* राग–द्वेष उपर विजय मेळवनार अने अज्ञानरूपी पडदाने फूंकी देनार साचो
विजेता छे.
* मारुं जीवन मारा आधारे छे. कोइना आधारे मारुं जीवन नथी.
* अपार सुख–साह्यबी तारा चैतन्यमां ज भरेली छे तेने भोगव.
* सम्यग्ज्ञान विना परमां सुख बुद्धि टळे नहि अने पोताना सुख स्वरूपनी श्रद्धा
बेसे नहि.