Atmadharma magazine - Ank 249
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 26 of 35

background image
अषाढः २४९०ः २३ः
* ऊंधी मान्यतामां जगत एवुं पकडाइ गयुं छे के ऊंधी मान्यता छोडवी ए मेरू
पर्वतने चलायमान करवा जेवुं थइ पडयुं छे.
* जेणे आत्मा जाण्यो तेणे सर्व जाण्युं.
* व्यवहारथी परमार्थमां जवातुं नथी पण ते वच्चे आवे छे, तेनो आश्रय छोडीने
ज परमार्थमां जई शकाय छे.
* “हे जीव! तुं भूलमा, सुख अंतरमां छे, ते बहार शोधवाथी नहीं मळे!”
* जे काम माटे तुं जन्म्यो छो, तेनुं अनुप्रेक्षण कर, तारा स्वभावने समज?
* हे मूर्ख! क्षणिक देहनी खातर त्रिकाळ स्वभावने न भूल राखने माटे रत्न न
बाळ.
* परभावमां जवुं ते मरण छे अने स्वभावमां रहेवुं ते जीवन छे....
* आ शरीर मारूं नथी, हुं तो शरीरथी जुदो जाणनार ज छुं. हुं अमर ध्रुव छुं. मारूं
मरण खरेखर छे ज नहीं. आ शरीर मारूं कदी पण हतुं ज नहीं. तो ते छोडतां
दुःख शानुं? मारी गति एक ज ध्रुव अने अचल छे, ते सिवाय मारूं कांइ पण आ
जगतमां नथी.–जीवनमां आवी भावना भावनारने मरणनो भय रहेतो नथी.
* तुं हंमेशा सुख इच्छे छे, छतां ते केम नथी मलतुं? तेनो विचार कर.
* ‘जिन सो ही है आतमा अन्य है सो कर्म’ एही वचनसें समजले जिन
प्रवचनका मर्म.
* ज्ञान ए ज सुख छे; अज्ञान ए ज दुःख छे.
* सत् समजवा माटे तारे फरवुं पडशे, सत् फरे तेम नथी.
* ज्ञानप्राप्ति माटे ज्ञानीनुं बहुमान अनिवार्य छे.
* शरीर आदिथी आत्माने लाभ मानवो ते अनंतो राग छे; रोग आदि परथी
आत्माने नुकशान मानवुं ते अनंतो द्वेष छे.
* अशुद्ध भाव ए ज आत्माने निश्चयथी बंध छे. द्रव्यबंध तो मात्र उपचार छे.
* जगत तेना भावे चाल्युं जाय छे. तुं तारा निजभावमां स्थिर रहे.
* भूलने जाणशे तो भूल टाळवानो उपाय समजीने भूल टाळशे.
* स्वभावना यथार्थ भान वगर कदी धर्मनी शरूआत पण थाय नहि.
* जे भूलमां पडयो छे, ने गुणने ओळखतो नथी, ते गुणीजनोमां पण गुणने न
जोतां मात्र भूलने ज देखे छे.–ए तेनी समजणनो दोष छे.
* शुभभाव छे ते अशुभभावने तो टाळी शके छे पण जन्म मरणने टाळी शकता
नथी.
* सत्यना शरणनो मार्ग आखी दुनियाथी जुदो छे. सम्यग्दर्शन एटले सत्नो
स्वीकार.
* दरेक कार्य अंतरंग कारणथी ज थाय छे, बहारना कारणथी थतुं नथी. सर्व काळे