ः २४ः अषाढः २४९०
सर्व क्षेत्रे सर्व द्रव्यमां अंतरंग कारणथी ज सर्व कार्यनी उत्पत्ति थाय छे.
* त्रण काळ त्रण लोकमां एवुं कोई द्रव्य नथी के जेनुं कार्य बीजा द्रव्यथी थतुं होय.
* पोताना ज्ञानमूर्ति आत्मस्वरूपने जाणीने आत्माथी संतुष्ट थवुं, आत्माथी तृप्त
थवुं, ने आत्मामां ज लीन थवुं.–ते परम ध्यान छे; तेनाथी वर्तमान आनंद
अनुभवाय छे अने थोडा ज काळमां ज्ञानानंदस्वरूप पूर्णदशानी प्राप्ति थाय छे.
आम करनार पुरुष ज ते दशाना परम सुखने जाणे छे, बीजानो तेमां प्रवेश नथी.
* आमां सदा प्रीतिवंत बन, आमां सदा संतुष्ट ने...
आनाथी बन तुं तृप्त, तुजने सुख अहो! उत्तम थशे.
* हे जीव! सुख अंतरमां छे, बहारमां नथी, सत्य कहुं छुं, भ्रम न पाम.
* “पुनर्जन्म छे, जरूर छे, ए माटे हुं अनुभवथी हा कहेवा अचळ छुं.”
* स्वाश्रयद्रष्टि ते सिद्धदशानुं कारण छे ने पराश्रयद्रष्टि ते संसार दशानुं कारण छे.
* “आत्मानो मोक्ष करवो ए ज कर्तव्य छे.” मोक्ष ते ज आत्मानुं पूर्ण सुख छे.
* सातमी नरकनो नारकी सम्यग्द्रष्टि सुखी अने स्वर्गनो देव मिथ्याद्रष्टि दुःखी;
आमां पुण्यनी शुं किंमत!! अहो, स्वभावदर्शन, तारो महिमा! अपूर्व अने
अनुपम छे;
अजीर्ण
* ज्ञाननुं अजीर्णः–पोताना जाणपणानो गर्व, अने बीजा साधर्मीप्रत्ये तिरस्कार के
तेनो अनादर करवो ते;
* त्यागनुं अजीर्णः– पोतानी मानेली क्रियाओ जे न करता होय पण ज्ञानमां सारा
होय, छतां तेनी निंदा करे, अने हुं तेनाथी कांइक अधिक छुं एम मानवुं ते .
आ बन्ने महा दोषो छे, ने ते तीव्र मोहबंधनुं कारण छे.
* जेने बेहद चैतन्य द्रव्यनी प्राप्ति थइ छे ते ‘महात्मा’ एक समयनी पर्यायथी
पोतानी महत्ता केम माने? ने तेथी तेने तेनुं अभिमान क्यांथी थाय? जेणे
पोतानी पूर्णताने जोई नथी ते ज ‘पामर’ तूच्छ पर्याय वडे पोतानी महत्ता
मानीने अभिमान करे छे. जेणे अंशमां (ते अंश पण सजातीय नहि पण
विजातीय, तेमां) अहंकार कर्यो छे तेणे अंशमां ज संतोष छे, ते पूरानी प्राप्तिनो
प्रयत्न नहि करे. अहो, अनंतमा भागनुं जे अल्प ज्ञान, तेनो अहंभाव
पूर्णताना साधकने शेनो होय?
* हे साधर्मी बंधु! अपूर्व आत्मकल्याण माटे, अनंतकाळे प्राप्त थयेला आ महान
सुअवसरने अंतरना उमळकापूर्वक वधावी लेजे, तारा आत्मकल्याण माटे आ
जीवनना सुअवसरने सर्व प्रकारे सफळ बनावजे. एक तरफ अनंतकाळनुं
सिद्धदशानुं सुख छे; बीजी