ः २६ः अषाढः २४९०
कदी जाय नहि, ने परनी ममता कदी थाय नहि. माटे एकवार अवश्य एम कर.
* आत्मस्वरूपथी विशेष महिमावाळी कोइ पण चीज आ जगतमां नथी.
आत्मस्वरूपथी महत् एवुं कांइ नथी; एवो कोइ प्रभावजोग आ सृष्टिने विषे
उत्पन्न थयो नथी–छे–नहि–अने थवानो पण नथी के जे प्रभावजोग पूर्ण आत्म
स्वरूपने विषे पण प्राप्त न होय.
* “जे स्वरूप छे ते अन्यथा थतुं नथी” ए ज अद्भुत आश्चर्य छे, अव्याबाध
स्थिरता छे.
* सम्यक्त्व सहित नरकवास पण भलो छे, अने सम्यक्त्व रहितनो देवलोकमां
निवास पण शोभा पामतो नथी.
* अपार एवा संसारसमुद्रथी रत्नत्रयीरूप जहाजने पार करवा माटे सम्यग्दर्शन
चतुर खेवटीओ (नाविक) छे.
* जे जीवने सम्यग्दर्शन छे ते अनंत सुख पामे छे अने जे जीवने सम्यक्दर्शन
नथी ते पुण्य करे तोपण अनंत दुःख भोगवे छे.
* हे जीव! तारे पुण्यना फळने शोधवा नहीं जवुं पडे–पण पुण्य फळ देवा माटे तने
शोधवा आवशे–माटे पुण्यनी के पुण्यना फळनी इच्छा छोडी दे.
* देहना वियोग समये निश्चिंत रहेजो. आत्मा शाश्वत छे.
* करवाना कामो करी ल्यो, वखत अमूल्य छे ए याद राखो अने अयोग्य रीते कोइ
शक्तिनो उपयोग न थाय तथा एक पळ पण नकामी न जाय तेनी काळजी राखो.
* स्वरूपनुं ज्ञान मनुष्य जीवननुं कर्तव्य छे अने ते ज्ञान मेळवी लेवामां ज
मनुष्य जीवननी सफळता छे.
***
सोनगढमां चौसठ ऋद्धिमंडल विधान
अषाड मासनी अष्टाह्निका दरमियान सोनगढमां
नंदीश्वरपूजननी साथे साथे चोसठ ऋद्धिमंडल विधान
पूजन करवामां आव्युं हतुं; जेमां ऋद्धिधारी मुनिश्वर
भगवंतोनो महिमा देखीने सौने मुनिभक्तिनी विशेष
भावना जागती हती. अषाड वद एकमनो दिव्यध्वनिनो
दिवस पण आनंदथी ऊजवायो हतो.