Atmadharma magazine - Ank 249
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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अषाढः २४९०ः २७ः
मोक्षनो एक ज उपाय
भगवतीप्रज्ञा ज मोक्षनुं साधन छे; आत्माथी भिन्न साधननो अभाव छे.
मोक्ष अधिकारमां मोक्षनो उपाय दर्शावतां
आचार्यप्रभु कहे छे के आत्माना स्वभावने अने
बंधभावने–ए बन्नेने तेमना लक्षणोवडे भिन्नभिन्न
ओळखीने, जुदा करवा–ते ज एक नियमथी मोक्षनो
उपाय छे. अने एनुं साधन, आत्माथी अभिन्न एवी
भगवतीप्रज्ञा ज छे. आत्माना मोक्षनुं साधन आत्माथी
भिन्न नथी. जेम मोक्ष आत्माथी भिन्न नथी तेम तेनुं
साधन पण आत्माथी भिन्न नथी. भाई, तारा मोक्षनुं
साधन अंतरमां तारा आत्माना आश्रये ज छे....माटे
आत्मा तरफ वळीने स्वाश्रये मोक्षना मार्गनुं सेवन कर.
प्रश्न– मोक्षनुं कारण शुं छे?
उत्तरः– आत्मा अने बंधने जुदा करवा ते एक ज मोक्षनुं कारण छे. आ सिवाय
बंधनना प्रकारो वगेरेने जाण्या करे के तेनुं चिंतन कर्या करे, ‘मारे बंधनथी छूटवुं छे–
छूटवुं छे’ एम चिंता कर्या करे–तो तेथी कांइ बंधनथी छूटकारो थतो नथी. बंधनथी
छूटकारो तो एक ज उपायथी थाय छे के आत्मानो स्वभाव अने बंधभाव–ए बन्नेने
जुदा करवा.
प्रश्नः– आ एक ज मोक्षनुं कारण केम छे?
आम मोक्षनो जिज्ञासु थइने तेनो उपाय समजवा माटे जे जीव प्रश्न पूछे छे
तेने आचार्यदेव समजावे छे–
बंधो तणो जाणी स्वभाव, स्वभाव जाणी आत्मनो,
जे बंध मांही विरक्त थाये, कर्ममोक्ष करे अहो. (२९३)
अबंधस्वभावी चैतन्यस्वभावथी भरेलो भगवान आत्मा, अने बीजी बाजु
विकाररूप एवा बंधभावो–ए बन्नेनो स्वभाव अत्यंत भिन्न छे.–आवी भिन्नता जे
जाणे छे