ते निजस्वभाव तरफ वळतो थको, बंधोथी विरमे छे,–एटले ते कर्मोथी मुक्त थाय छे. आ
सिवाय बीजी रीतथी मुक्ति थती नथी; आ एक ज मोक्षनो उपाय होवानो नियम छे.
पण रसऋद्धि वगेरे अनेक ऋद्धि–लब्धिओ प्रगटे पण चैतन्यचमत्कार पासे जगतना
बीजा कोइ चमत्कार के ऋद्धिनी महत्ता तेमने नथी. निर्दोषता ने वीतरागता जेमां भरी
छे–एवो आत्मा बंधभावोथी अत्यंत जुदो छे. रागादि दोषो ते तो बंधनो स्वभाव छे,
ते आत्मानो स्वभाव नथी. आत्मानो स्वभाव तो चैतन्यभावथी ज सर्वत्र भरेलो छे.
समाय छे, ने केवळज्ञानादि अनंत ऋद्धि तारा चैतन्यचमत्कारमां समाय छे. जगतने
बहारना चमत्कारनो महिमा आवे छे के सोमा सतीना शीलना प्रतापे सर्पनो हार बनी
गयो, भक्तिथी जेलना ताळां तूटी गया, वगेरे;–परंतु चैतन्यना गुप्त चमत्कारमां बेहद
स्वभावसामर्थ्य भर्युं छे–ते पोताना चमत्कारनो महिमा पोताने आवतो नथी. स्वभाव
शुं चीज छे ने परभावरूप बंधभाव कइ रीते भिन्न छे ते जाणे तो बंधनथी पाछो
वळीने स्वभाव तरफ वळे ने मोक्षउपाय प्रगटे.
जे जीव बंधभावने अने आत्मस्वभावने खरेखर जुदा ओळखे ते जीव बंधथी पाछो
फरीने स्वभाव तरफ वळ्या वगर रहे ज नहि. जो एम न थाय तो तेणे खरेखर बन्नेने
जुदा जाण्या ज नथी, भेदज्ञान कर्युं ज नथी.
जे द्विधाकरण ते एक ज नियमथी मोक्षकारण छे, बीजुं कोइ मोक्षकारण नथी.
शिष्यने आचार्यदेव साधन बतावतां कहे छे केः आत्मा अने बंधने भिन्न करवामां
भगवती प्रज्ञा ज साधन छे. केमके बीजा कोइ भिन्न साधननो अभाव छे–