विद्यानंदस्वामीए १८ थी २० हजार श्लोक प्रमाण टीका करी छे त्यार बाद पण
घणा टीका गं्रथ रचाया छे. आ ग्रन्थमां असाधारण श्रमद्वारा अनेक टीकानो सार
संग्रहरूपे छे. सर्वज्ञ वीतराग कथित तत्त्वार्थोनुं सम्यग्दर्शनादिनुं निरुपण सुगम
अने स्पष्ट शैलीथी छे. सम्यक् अनेकान्तएकान्त, नयार्थ, प्रमाण अने नय
विभाग द्वारा सुसंगत शास्त्राधार सहित प्रश्नोतर, लगभग ७प पाना जेटला
नवा शास्त्राधार उमेराया छे जेमां प्रयोजनभूत विवेचन तथा विस्तारथी
प्रस्तावना छे. शास्त्र महत्वपूर्ण होवाथी तत्त्व जिज्ञासुओए वारंवार वांचवा
योग्य छे.
संक्षेपमां खास प्रयोजनभूत तत्त्वज्ञानना पायानी जाणकारी माटे आ प्रवेशिका छे.
जैन–जैनेतर सर्व जिज्ञासुओमां निःसंकोच वहेंचवा योग्य छे, ईंग्लीश भाषामां
पण छपाववा योग्य छे. जेमां अत्यंत स्पष्ट शैलीथी मूळभूत जरुरी वातोनुं ज्ञान
कराववामां आव्युं छे.