है धन्य धन्य वे निर्मोही
[समकितीनी स्तुति]
दुनियामें रहे चाहे दुर रहे जो खुदमें समाये रहते है,
सब काम जगत के किया करे, नहीं प्यार किसीसे करते है. १
वह चक्रवर्ती पद भोग करे पर भोगमें लीन नहीं होते.
वह जलमें कमल की भांति सदा घरवास बसाये रहते है. २
कभी नर्कवेदना सहते पर मगन रहें निज आतम में,
स्वर्ग संपदा पाकर के भी रुचि हटाये रहते है.... ३
नहीं कर्म के कर्ता बनते है स्वामीत्व न परमें धरते है...
नहीं दुःखमें दुःखी सुखमें सुखी समभाव धराये रहतै है.... ४
वह सप्त भयसे रहित सदा, वे सरधासें न कभी डिगते,
जिनवरनंदन केली सदा वह निजआनंद में करते है.... प
है धन्य धन्य वे निर्मोही
जिन शांतदशा है प्रगटाइ;
शिवराम चरण में उनको सदा
हम शिष झुकाये रहते है...६