६ः आत्मधर्मः २४९
(९प) जगतमां उपशम करतां क्षायकभाववाळा जीवो केटला?
(९६) संसारमां क्षयोपशमसमकिती वधारे के क्षायकसमकिती?
(९७) सीमंधरनाथमां न होय ने आपणामां होय ते कयो भाव?
(९८) सीमंधरनाथमां होय ने आपणामां अत्यारे न होय ते कयो भाव?
(९९) सीमंधरनाथमां होय ने आपणामांय होय–ते कयो भाव?
(१००) केवळज्ञान थाय त्यारे कयो भाव आत्मामांथी ओछो थाय?
(१०१) एकजीव अरिहंतमांथी सिद्ध थयो त्यारे कयो भाव तेनामांथी ओछो
थाय?
[जवाबो माटे आवतो अंक जुओ]
वैराग्य–अमृत
अनंतकाळमां संयोग–वियोगना अनेक प्रसंगो
जीवने बन्या छे. घणा जीवो साथे पोते संबंध बांधीने
सौने पोते छोडीने आव्यो छे, घणा जीवोए पोताने
छोडयो छे; एम अनंतकाळमां घणाने पोते छोडया छे ने
बीजा जीवोए पोताने छोडयो छे. मात्र आ जन्मना
रागने लइने जीवने दुःख थाय छे. खरेखर संसारमां कोइ
कोइनुं नथी. आ संसारमां सारभूत होय तो ज्ञायक
आत्मा अने पंचपरमेष्ठी भगवान छे. साचुं शरण
आत्मानुं अने पंच परमेष्ठी भगवाननुं छे.