Atmadharma magazine - Ank 250
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 37

background image
श्रावणः २४९०ः ९ः
सम्मेदशिखरनी यात्रा करीने ऊतरता’ता त्यारे...
सम्मेदशिखर महानतीर्थनी यात्रा...जेनुं मधुर स्मरण गमे त्यारे याद करतां
आनंद पमाडे छे ने भक्ति जगाडे छे...एनुं आलेखन करतुं “मंगल तीर्थयात्रा”नुं एक
प्रकरण अहीं ‘आत्मधर्म’ ना जिज्ञासुओ माटे आप्युं छे...जे सौने गमशे.
‘अहा, जाणे १२ कलाक तो सिद्धभगवंतोना देशमां जई आव्या.’
त्यां सम्मेदशिखरनी छेल्ली पारसटूंक उपर यात्रासंबंधी चर्चावार्ता चाली ने
शिखरजी तीर्थनो घणो महिमा कर्यो गुरुदेवना श्रीमुखथी शिखरजीनो परम महिमा अने
सिद्धपदनी ऊंची ऊंची भावनाओ सांभळीने यात्रिकोना हैया आनंदथी डोली ऊठया
हता. आनंदकारी यात्रानी पूर्णताना उल्लासतरंगो चारेकोर फेलाई गया हता. अहा,
जाणे गुरुदेव साथे सिद्धभगवानने भेटी आव्या ने हवे बस! ए सिद्धपदनी
आराधनामय ज आपणुं जीवन बनी जाय–एवी उर्मिओ अंतरमां वेदाती हती...अहा,
आ यात्रानी शी वात करवी? केटलाक आनंदकारी प्रसंगो एवा होय छे के वाणीथी जे
व्यक्त थई शकता नथी. (बाहुबलीनाथना दर्शन वखते पण गुरुदेवने एवुं ज थयेलुं...
ए भव्य वीतराग–