Atmadharma magazine - Ank 250
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः १०ः श्रावणः २४९०
बिंबना दर्शनथी जे उर्मिओ जागती ते वचनमां पूरी आवती न हती.) एवो ज
जीवननो आ यात्रानो धन्य प्रसंग छे...संख्याबंध यात्रिक भाई–बहेनो गुरुदेव साथे
थयेली अपूर्व यात्रानो आनंद अनुभवता हता ने जीवनने सफळ मानता हता.
रातना बे वाग्याथी पहाड उपर चडया छीए, पच्चीसे टूंकनी यात्रा घणा
आनंदोल्लासथी पूरी करी छे; परंतु गुरुदेव साथे यात्रा करतां तीर्थभक्तिनो एवो रंग
चडयो छे के हवे पहाड उपरथी नीचे उतरवुं गमतुं नथी. जेम खरा आत्मार्थीने
चैतन्यनो एवो रंग चडे के परभावमां क्यांय तेने गमे नहि तेम यात्रिकोने तीर्थधाम
छोडीने बीजे क्यांय जवुं गमतुं नथी. अहा, जाणे तीर्थधाममां ज रहीए ने
साधकभावना रंगथी आत्माने रंगी दइए. अनंता साधकोए ज्यां निजपदने साध्युं
एवी आ साधनाभूमिमां आव्या छीए तो अहीं ज निजपदने साधी लइए!–आवी
अकथ्य ऊंडी ऊर्मिओ जागती हती.
शाश्वत सिद्धिधाम सम्मेदशिखरजीने भेटवानी भावना घणा उल्लासपूर्वक
पूरीकरीने गुरुदेवे पर्वतपरथी नीचे उतरवानी शरूआत करी. हृदयमां भरेला यात्राना
संस्कार हृदयना भणकारानी साथे धबधब थता हता...यात्रानो पवित्र प्रसंग जीवनमां
सदाय याद रहेशे ने सिद्धिपंथनी पुनित प्रेरणा सदा आप्या करशे–आवी लागणी बधा
यात्रिकोमां देखाती हती. अहो सिद्धभगवंतो! आजे १२ कलाक में आपना पवित्र
धाममां वास कर्यो...आपनी पवित्र सिद्धभूमिना स्पर्शथी मारो आत्मा पावन
थयो...मने आपना पवित्र मार्गनी प्राप्ति थई...ने दुनिया तो जाणे क्यांय भूलाई गई!
अनंता तीर्थंकर भगवंतोनी अने संतोनी पवित्र चरणरजने फरीफरी मस्तके चढावीने
तीर्थराजनुं बहुमान कर्युं, एटलुं ज नहीं–आ पण तीर्थनो अंश छे अने तेने ज्यारे
जोईशुं त्यारे तीर्थनुं ज स्मरण थशे’ एम कल्पीने त्यांनी चरणरजने बहुमानपूर्वक
साथे लई लीधी.
गुरुदेव साथे आ सिद्धिधामनी यात्रा एवा भावथी थइ–जाणे के अद्रश्य एवा
सिद्धभगवंतोने द्रश्यमान कर्या...सिद्धिधाममां विचरता मुमुक्षुहृदयमां पगले पगले
सिद्धस्वरूपनो साक्षात् चितार खडो थतो हतो...ने जाणे के पोते ए सिद्धोनी मंडळी वच्चे
ज बेठा होय एवा अचिंत्यभावो साधकोने उल्लसता हता. आवा धाममांथी उतरतां
पहेलां एकवार फरीने नयन भरीभरीने शिखरजीनुं अवलोकन कर्युं ने हृदयमां तेनो
अचिंत्यमहिमा भर्योः वाह शिखरजी धाम! तमारुं स्थान भारतना तीर्थोमां सर्वोत्कृष्ट
छे. अनंत चोवीसीना अनंत तीर्थंकरो ने अनंता मुनिश्वरोए अहींथी सिद्धपद साध्युं छे,
ने तेमनी