साधनाना प्रतापे अहींनी कांकरी कांकरी पूजनिक बनी गइ छे. चारे बाजु छवायेलो आ
आखो गौरवपूंज अहीं सुवर्णभद्रटूंक परथी नजरसमक्ष देखाय छे, अहींथी जाणे के
सिद्धलोक बहु ज नजीक होय एवुं लागे छे, ने अनंता सिद्धो तथा तेमनी साधना
स्मृतिमां आवे छे; जीवनमां न भूलाय एवी उच्च भावनाओ हृदयमां कोतराइ जाय छे.
उतरता पहेलां सौए फरी फरीने ए पावनसिद्धिधामने नमस्कार कर्या...अयोगी
भगवंतोनी आ भूमिने नमस्कार! सिद्धभूमिने नमस्कार! अहा केवो पवित्र देश! हे
भगवान! तमारा देशमां आवीने हुं दुनियाने भूली गयो. दुनियानां दुःखो दूर थइ
गया...आत्मा साधकभाव तरफ जाग्यो. छेल्ले नमस्कारमंत्रना शांतिजाप करीने मंगल
जयनाद करता करता, घंटनाद गजावतां गजावतां ने फरीफरीने आ तीर्थनी यात्रा
करवानी भावना भावतां भावतां, भगवान साथे निकटमुक्तिना कोलकरार करीने
आनंदथी यात्रा पूरी करी.
केवी परम अद्भुत भक्ति होय ते आजे जोवा मळ्युं. भूख–तरस के थाक तो याद
आवता न हता...समवसरणमां भूख–तरस के थाक कयांथी लागे! आवी यात्रा महान
भाग्यथी ज थाय छे. जेम तीर्थंकर साथे ते काळना जे गणधरादि मुनिओ ने श्रावको
विचरता हशे तेमने केवो आनंद थतो हशे! तेम अहीं पण यात्रिकोने गुरुदेव साथे
तीर्थधाममां विचरतां आनंद थतो हतो. जाणे पूर्वना द्रश्यो ज वर्तमान नजरे तरवरता
हता. गुरुदेव पण प्रमोदथी कहेता के आजे जीवननो आ एक अगत्यनो प्रसंग बन्यो;
ते यादगार बनी रहेशे. यात्रा घणी सरस थइ. यात्राना आनंदमंगल गातां गातां सौ
नीचे उतरी रह्या हता, उतरतां उतरतां शिखरजीनी शोभा नीहाळतां आंखो ठरती
हती...सम्मेदशिखर पर्वत बहु मोटो विशाळ अने भव्य छे...एनी दिव्य प्राकृतिक शोभा
अनेरी छे, रस्ता भारे गीच झाडीवाळा छे. बे मिनिटनुं अंतर होय तोय माणसो
एकबीजाने जोइ न शके. तेमांय टूंकी केडीना रस्ता तो एवी गीच झाडी वच्चेथी पसार
थाय छे के जाणे ऊंडी गूफामां चालता होइए तेवुं लागे. ठेरठेर केळां वगेरेनां झाडो
ऊगेलां छे, ते उपरांत हरडे वगेरे हजारो प्रकारनी औषधि अने रंगबेरंगी पुष्पलताओ
चारे बाजु छवायेली छे. रस्तामां ठेरठेर ध्यानयोग्य स्थळो छे..ते आजे ध्यानस्थ
मुनिवरो वगर खाली सूनां सूनां लागे छे. अहा, मुनिवरो अहीं बिराजता होय...कोइक
मुनिभगवंत मळी जाय...तो अहीं ज रही जइए ने चैतन्यनी अनुभूतिने साधीए–
आवी उर्मिओथी घडीभर तो पग शिखरजी पर थंभी जाय छे. तीर्थभूमिनी ए पावन
झाडी ने पहाडी जोतां एम लागे छे