छे,–मारे जगतने नथी रीझववुं, जगत करतां आत्मा वहालो लाग्यो छे, आत्मा करतां
जगत वहालुं नथी, (जगत इष्ट नहि आत्मथी)’ आवी आत्मानी लगनीने लीधे
एवुं ज लक्ष छे; पण हुं समजीने बीजाथी अधिक थाउं, के हुं समजीने बीजाने समजावुं–
एवी वृत्ति ऊठती नथी.–जुओ आ आत्मार्थी जीवनी पात्रता!
दरियामां डुबतो आणे बचाव्यो, आणे मने जीवन आप्युं–एम महाउपकार माने; तेम
संसारसमुद्रथी केम बचे! त्यां कोई ज्ञानी संत तेने तरवानो उपाय बतावे तो ते प्रमाद
वगर, उल्लसता भावथी ते उपाय अंगीकार करे छे. जेम डुबता पुरुषने कोई वहाणमां
आत्मार्थी जीवने ज्ञानीसंतो भेदज्ञानरूपी वहाणमां बेसवानुं कहे छे, त्यां ते आत्मार्थी
जीव भेदज्ञानमां प्रमाद करतो नथी; अने भेदज्ञाननो उपाय दर्शावनारा संतो प्रत्ये तेने
बहार काढया, भवसमुद्रमां डुबता अमने आपे बचाव्या; संसारमां जेनो कोई बदलो
नथी एवो परम उपकार आपे अमारा उपर कर्यो.
छे, ए प्रसंगे भारतभरमांथी ४०–प० हजार भक्तो त्यां भेगा थाय छे. छेल्लो महा
तीर्थक्षेत्र कमिटिए सूचीत कर्युं छे. श्रवणबेलगोलाना गोमट्टस्वामीतीर्थनो वहीवट दि.
जैन समाजवती मैसुर गवर्नमेन्ट संभाळती हती. हवे एक दि. जैन ट्रस्ट बनावीने तेने
उन्नत्ति सुगम बनशे.