Atmadharma magazine - Ank 250
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 37

background image
श्रावणः २४९०ः १पः
सिद्धपदना साधक श्रुतधर सन्त
– (श्रुतपंचमी) –
भगवंत संतोए कहेलां श्रुत अतीन्द्रिय आत्मसुखनी रुचि करावीने
बाह्यविषयोथी विरक्ति करावे छे.
नमस्कार हो ए श्रुतने अने श्रुतप्रकाशक सन्तोने
आजे श्रुतपंचमीनो एटले ज्ञाननी अखंड आराधनानो पवित्र दिवस छे.
भगवान तीर्थंकरदेवनी वाणीनी अच्छिन्नधारा परम दिगंबर संतोए टकावी राखी छे;
ए वाणी सिद्धस्वरूपी शुद्धात्मानुं प्रकाशन करे छे. अंतरमां सिद्धपदने साधतां साधतां,
भावश्रुतधारक सन्तोए भगवाननी वाणी झीलीने द्रव्यश्रुतनी परंपरा पण टकावी
राखी छे.
अंतर्मुंख थइने गिरिगूफामां जेओ स्वानुभव वडे चैतन्यनुं आराधन करता
हता–एवा संतोए, (–धरसेन पुष्पदन्त अने भूतबली स्वामीए–) जे षट्खंडागमरूपे
भगवाननी वाणी संघरी तेना बहुमाननो मोटो महोत्सव आ श्रुतपंचमीना दिवसे
अंकलेश्वर (गुजरात) मां उजवायो हतो. एना टीकाकार श्री वीरसेनस्वामी पण महा
समर्थ अगाधबुद्धिना दरिया हता. अहा, श्रुतना दरिया जेवा ए दिगंबरसन्तोने जोतां
ज सर्वज्ञनी अने जिनशासननी प्रतीत थइ जती. सिद्धपदनी आराधना केम थाय ते
वात आ संतोए सिद्धान्तमां (पंचास्तिकाय वगेरेमां) बतावी छे. सिद्धपद केवुं छे?
स्वयमेव चेतक सर्वज्ञानी–सर्वदर्शी थाय छे,
ने निज अमूर्त अनंत अव्याबाध सुखने अनुभवे.
(पंचास्तिकायः २९)
आत्मामां ज्ञान–दर्शन–सुखस्वभाव छे. तेमां कलेश नथी. अहा, निरालंबी
आत्मदशा! सिद्धभगवंतो पूर्ण निरालंबी थया छे; एने साधनारा संत–मुनिनी दशा
पण अंदरमां घणी निरालंबी होय छे. जेमां वस्त्रादिनुंय आलंबन नथी एवुं मुनिपद
अंदरनी घणी निरालंबीदशा वगर होय नहि. सिद्धपदसाधक ए संतने चैतन्यमां एवी
लीनता थई छे के बहारनुं अवलंबन छूटी गयुं छे. एवा संतो सिद्धपदने साधता
साधता क्यारेक शास्त्रोनी रचना करीने जगत उपर उपकार करे छे. धरसेनस्वामी,
पुष्पदंतस्वामी, भूतबलीस्वामी, यतिवृषभस्वामी, वीरसेनस्वामी वगेरे संतोए
सिद्धपदने साधतां साधतां