कराव्यो छे. ए षट्खंडागमनी समाप्तिनो मोटो महोत्सव चतुर्विध संघे
अंकलेश्वरमां बे हजार वर्ष पहेलां श्रुतपंचमीना दिवसे कर्यो–ते महान दिवस आजे
छे. (जेठ सुद पांचम)
विषयो–के ज्यां तारुं अस्तित्व ज नथी त्यां तुं सुख माने छे, ने तारुं अस्तित्व–के
ज्यां अनंतसुख भरेलुं छे–तेनी सामे तुं जोतो नथी...पछी तने सुख कयांथी थाय?
बाह्य विषयोमां ज्यां तुं सुख माने छे त्यां खरेखर सुख नथी पण दुःख छे, कलेश
छे. तारा स्वभावमां नजर कर तो विषयोना कलेश वगरनुं अतीन्द्रिय–शांत सुख
भरेलुं छे.–एमां नथी कोई अंकुश के नथी कांइ विघ्न. तारे परमेश्वरने जोवा होय ने
परमेश्वर थवुं होय तो ते परमेश्वरनी शोध तारा आत्मामां ज कर. पूर्ण ज्ञान ने
पूर्ण सुखनुं अचिंत्य ऐश्वर्य तारामां ज भर्युं छे. स्वकीय सुखना अनुभवमां जेम
सिद्धोने परनुं कांइ प्रयोजन नथी, तेम तने पण तारा स्वकीय सुखना अनुभवमां
परथी कांइ प्रयोजन नथी, तेमां परनुं कांई ज अवलंबन नथी, परनी कांई ओथ के
टेको नथी. तारा स्वभावनी ज ओथे आत्मसुखनो अनुभव थाय छे–एवुं तारुं
अस्तित्व छे.
सुखोमां ज सुख मानी, तेमां अटके छे,–पण तेमां तो दुःखनो ज अनुभव छे, किंचित्
सुख नथी, सुख शुं छे तेनी जीवने खबर पण नथी तो वेदन क्यांथी होय? विषयातीत
सुखनो एक अंश पण ज्यां वेदनमां आवे त्यां जगत आखाना विषयोना अवलंबननी
बुद्धि ऊडी जाय, सर्व विषयोथी रुचि विरक्त थई जाय.