Atmadharma magazine - Ank 250
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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श्रावणः २४९०ः ३१ः
देवना शासनने क्षणमात्र भूलीश नहि. आ मनुष्य–चिंतामणिरत्नने वटावी आत्मानो
धर्म प्राप्त करजे अने तेनाथी तारा आत्माने तुं जीवाडजे. जो आ जीवनमां आत्मानो
धर्म समजवानुं चुक्यो तो,–पेलो मूर्ख तो रत्नने बाळीने एकज वार भूखे मर्यो पण तुं
तो जिनशासन गुमावीने अनंत–अनंत भवमां मरीश. माटे हे भाई, आ दुर्लभ
जिनधर्म पामीने विषयोमां न राचीश. जिनधर्म पामीने जीवनथी सार्थकता करजे हो!
“नथी. धर्यो देह विषय वधारवा”
(९७) कुंदकुंदभगवान!
हे कुंदकुंदभगवान! आप तो आत्मा छो; आपने मातापिता, कूळ वंश, गाम,
जन्म–मरणादि छे नहि; आप तो ज्ञान–दर्शन–चारित्र वगेरे गुणना भंडार छो. गुणो
वडे ज आप मोटा छो. ज्ञानमय आपनुं अंतर्जीवनचारित्र तो आपेज समयसारमां
उतार्युं छे; ए अंतर्जीवन समजवानी अमोने शक्ति प्रगटो.
(९८) क्यां अने केम?
१ प्रश्नः– धर्म क्यां थाय?
उत्तरः– धर्म पर्यायमां थाय, द्रव्य–गुणमां न थाय, ने परमांय न थाय.
र प्रश्नः– अधर्म क्यां थाय?
उत्तरः– अधर्म पर्यायमां थाय, द्रव्यगुणमां न थाय, ने परमांय न थाय.
३ प्रश्नः– धर्म केम थाय?
उत्तरः– आत्माना शुद्ध स्वभावना आश्रये धर्म थाय.
४ प्रश्नः– अधर्म केम थाय?
उत्तरः– आत्माना शुद्ध स्वभावनी द्रष्टि छोडीने, पर्यायबुद्धिथी अधर्म थाय छे
(९९) भेदविज्ञान
जे कोई सिद्ध थया छे ते भेदविज्ञानथी थया छे; जे कोइ बंधाया छे ते
भेदविज्ञानना अभावथी ज बंधाया छे.
आ रीते भेदज्ञान मोक्षनुं मूळ छे;
माटे–
भावयेत् भेदविज्ञानम् इदं अच्छिन्नधारया;
तावत् यावत् परात् च्युत्वा ज्ञानं ज्ञाने प्रतिष्ठतं.
(१००) सर्व सुखनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे. सर्व दुःखनुं मूळ मिथ्यादर्शन छे.
(चालु)
हे भाई, जो तने मोक्षनो उत्साह होय, मोक्षने साधवानी
लगनी होय तो समस्त बंधभावोनी रुचि तुं छोड...केम के
मोक्षना मार्गमां समस्त बंधभावोने निषेधवामां आव्या छे.