: ८ : आत्मधर्म : भादरवो :
भाई, विकारभावनो संबंध आत्मा साथे छे, आत्माना अस्तित्वमां ते भाव
थाय छे; माटे ते विकारभाव कोई बीजो करावतो नथी पण तुं ज तारा अपराधथी तेनो
कर्ता छो, एम तुं स्वीकार; ने ते विकार तारा स्वभावभूत नथी एम जाणीने तेमांथी
एकत्वबुद्धि छोड.
कर्म आत्माने विकार करावे–ए वात तो मूळमांथी काढी नांखी; आत्मा अने
जडनी अत्यंत भिन्नता छे. तेमना कार्यनी अत्यंत भिन्नता छे–एनो जेने निर्णय नथी ते
तो परथी जुदो पडी स्वभावसन्मुख क्यारे आवशे? हजी पोतामांय ज्ञानभाव अने
रागभाव बंनेनुं स्वरूप भिन्नभिन्न छे–एनो निर्णय तो बहु सूक्ष्म छे.
अरे, आ तत्त्वनिर्णय ए मूळ वस्तु छे, एना वगर जीवने शांति थाय ज नहि.
ज्यां तत्त्वनिर्णयमां ज भूल होय ने बुद्धि बहिर्मूखपणे बहार ज भटकती होय त्यां
आत्मशांति क्यांथी मळे?
आचार्यदेव कहे छे के भाई पर साथे तुं आटलो बधो संबंध माने छे के पर मारुं
हित–अहित करे; परंतु परद्रव्य तो तने स्पर्शतुंये नथी, ए तो तारा स्वरूपथी बहार ने
बहार ज रहे छे. भाई, तारो उपयोग तुं तत्त्वनिर्णयमां जोड परद्रव्य मने रोके छे एम
मानीने जो तुं अटकी जतो हो तो एवी जिननी आज्ञा नथी. जिनआज्ञा तो एवी छे के
तुं तारा स्वभावनो पुरुषार्थ कर त्यां कर्म स्वयमेव खसी जशे. तारा गुण–दोषनो
उत्पादक कोई बीजो नथी. अज्ञानभावे तुं तारा दोषनो कर्ता छो, अने ज्ञानभावे ते
विकारनुं कर्तृत्व टळी जाय छे, एटले ज्ञानभावे आत्मा विकारनो अकर्ता छे; परना
कर्तृत्वनी तो वात ज नथी.
आचार्यदेव करुणाथी कहे छे के हे भाई? आत्माना भावने बीजो करे एम जो
तुं मान, ने आत्माने सर्वथा अकर्ता ज मान तो तेमां जिनवाणीथी विरुद्ध मान्यतावडे
तुं ज तारा आत्मानो घात करे छे; तेमां तीव्र मिथ्यात्वना सेवनथी आत्माना गुणो
हणाय छे. आवा आत्मघातथी तारे बचवुं होय ने तारा गुणनी रक्षा करवी होय तो तुं
जिनवाणी अनुसार वस्तुस्थितिने जाण.
आत्मा पोतेज पोताना विकारी के निर्मळ भावोना कर्ता छे. जे औदयिक भावो
छे ते भावोने स्वतंत्रपणे आत्मा ज करे छे. धर्मरूप जे औपशमिक आदि भावो, ते
भावोनो कर्ता पण आत्मा पोते ज पोताना छ कारकोथी छे, तेमां कोई बीजा कारकोनी
अपेक्षा नथी. अहा, आवी स्वतंत्रतानो जे निर्णय करे ते पोते पोतानो घात केम करशे?
ते एकला विकारना कर्तृत्वमां केम रहेशे? ए तो स्वाश्रये ज्ञानभावथी विकारनुं कर्तृत्व
छोडीने सम्यग्दर्शनादि भावरूपे परिणमशे.