Atmadharma magazine - Ank 251
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : ९ :
आ....नं....द....नो दि....व....स
(श्रावण वद बीजना विशिष्ट आनंदकारी प्रवचनमांथी वीणेला एकावन मोती)
१. आत्मा ज्ञान–दर्शन–चारित्रस्वरूप छे; तेनी सम्यग्दर्शनादि
परिणति तो संवर–निर्जरा–मोक्षनुं ज कारण छे.
२. विकल्परूप जे व्यवहार छे, ते खरेखर आश्रय करवा योग्य नथी;
ते पोते पराश्रित छे.
३. निश्चयमोक्षमार्ग स्वाश्रित छे; ने तेनाथी ज बंधन छेदाय छे.
४. स्वाश्रित भावने मोक्षमार्ग कहेवो ते भूतार्थ मोक्षमार्ग छे,
खरेखरो मोक्षमार्ग छे.
५. पराश्रित जे भावो छे ते अभूतार्थ छे, ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी.
६. ज्ञानी धर्मात्मा स्व–परने भिन्न जाणीने स्वाश्रये मोक्षमार्ग साधे छे.
७. मोक्षमार्गने परनो आश्रय जरापण नथी; परथी ते अत्यंत
निरपेक्ष छे.
८. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ए त्रणेय रत्नत्रय, अत्यंत स्वाश्रित
छे, ने परथी अत्यंत निरपेक्ष छे. आवा रत्नत्रय ते धर्मीनुं
कर्तव्य छे.
९. ते निर्मळ रत्नत्रयपर्यायना षट्कारक आत्मामां ज छे; आत्मा ज
पोतानी शक्तिथी षट्कारक रूप थईने, रत्नत्रयरूप परिणमे छे.
१०. अशुद्धताना पण षट्कारक आत्मामां छे,–पण ते क्षणिकपर्याय
पूरता ज छे; तेनुं कर्तृत्व परमार्थे धर्मीने नथी.
११. बीजी सूक्ष्म वात अहीं ए छे के जे पराश्रित व्यवहार छे ते
व्यवहारने पण निश्चयनुं कारकपणुं नथी, साधनपणुं खरेखर नथी.
१२. पर्यायमां जे अभेद साधन–साध्य कहेवाय तेमां पण सजातिय
साधन–साध्य छे, साधन अने साध्य एक जातना छे.