Atmadharma magazine - Ank 251
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : भादरवो :
चारे अनुयोगनुं तात्पर्य छे. ज्ञानी चैतन्यमहेलमां प्रवेशीने निजानंदने वेदे छे.
अज्ञानी चैतन्यस्वरूप निजघरने भूलीने बहार परभावोमां भटके छे ने दुःखने वेदे छे.
शुद्धात्मभावरूप भावश्रुत
शास्त्रो ज्ञानस्वभावमां एकता करवानुं कहे छे ने रागमां एकता छोडवानुं कहे
छे, भावश्रुतवडे शुद्धचैतन्यनुं वेदन करवुं ने विकारनुं वेदन छोडवुं.–आवुं दर्शावनारा
द्रव्यश्रुत ते ज साचा द्रव्यश्रुत छे; कोई जीव आवा द्रव्यश्रुतने तो भणे, ‘शास्त्रो आम
करवानुं कहे छे’ एम तो जाणे, परंतु पोते भावश्रुतज्ञानरूप परिणमीने शुद्धात्मानुं
संचेतन न करे, अनुभव न करे तो शुद्धात्मज्ञानना अभावथी ते अज्ञानी ज छे, ने
अज्ञानथी ते विकारनो कर्ता–भोक्ता ज छे. ज्ञानीने शुद्धात्मज्ञानरूप भावश्रुत प्रगट्युं
छे, ने तेथी तेने समस्त कर्मफळ प्रत्ये अत्यंत विरक्तभाव वर्ते छे, माटे ते कर्मफळनो
अभोक्ता ज छे. भावश्रुतज्ञानमां एवी योग्यता नथी के विकारने वेदे. जेम
विकारभावमां एवी योग्यता नथी के ते मोक्षनुं कारण थाय; तेम ज्ञानीना भावश्रुतमां
एवी योग्यता नथी के ते विकारनुं वेदन करे.
मोक्षनुं साधक भावश्रुत
शुद्धात्मज्ञानने अहीं भावश्रुत कह्युं, तेमां मोक्षमार्ग समाय छे; सम्यग्दर्शन–
सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र ए त्रणेय शुद्धात्माना अनुभवरूप भावश्रुतमां आवी जाय
छे.–आवुं भावश्रुत ते मोक्षनुं साधक छे. आवुं भावश्रुत ते शुद्धात्माना आश्रये छे;
जेटलो स्वाश्रयभाव छे तेटलुं ज मोक्षनुं कारण छे; जरापण पराश्रयभाव ते मोक्षनुं
कारण नथी.
सम्यग्दर्शनमां ज्ञानीनो उपकार
सम्यग्दर्शन पामवानी जेनी योग्यता छे तेने साक्षात ज्ञानीनो आत्मा अने
तेमनी वाणी ते निमित्त छे. सम्यग्दर्शन तो पोते भावश्रुतरूपे परिणमीने शुद्धात्मानो
अनुभव करे त्यारे थाय छे, पण तेमां निमित्तनी पण ए विशेषता छे के निमित्तरूपे
पण भावश्रुतरूपे परिणमेला आत्मानी ज देशना होय. आ रीते ज्ञानीना भावश्रुतनी
ओळखाण ते भावश्रुतनुं कारण छे. आवा भावश्रुत वगरनुं तो बधुंय भाररूप छे.
शांतिनुं वेदन क्यारे?
ज्ञानना वेदनमां ज शांति छे; दुनियानी आकुळताना विकल्पो ओछा थाय ने
रागनी