
द्रव्यश्रुत ते ज साचा द्रव्यश्रुत छे; कोई जीव आवा द्रव्यश्रुतने तो भणे, ‘शास्त्रो आम
करवानुं कहे छे’ एम तो जाणे, परंतु पोते भावश्रुतज्ञानरूप परिणमीने शुद्धात्मानुं
संचेतन न करे, अनुभव न करे तो शुद्धात्मज्ञानना अभावथी ते अज्ञानी ज छे, ने
अज्ञानथी ते विकारनो कर्ता–भोक्ता ज छे. ज्ञानीने शुद्धात्मज्ञानरूप भावश्रुत प्रगट्युं
छे, ने तेथी तेने समस्त कर्मफळ प्रत्ये अत्यंत विरक्तभाव वर्ते छे, माटे ते कर्मफळनो
अभोक्ता ज छे. भावश्रुतज्ञानमां एवी योग्यता नथी के विकारने वेदे. जेम
विकारभावमां एवी योग्यता नथी के ते मोक्षनुं कारण थाय; तेम ज्ञानीना भावश्रुतमां
एवी योग्यता नथी के ते विकारनुं वेदन करे.
छे.–आवुं भावश्रुत ते मोक्षनुं साधक छे. आवुं भावश्रुत ते शुद्धात्माना आश्रये छे;
जेटलो स्वाश्रयभाव छे तेटलुं ज मोक्षनुं कारण छे; जरापण पराश्रयभाव ते मोक्षनुं
कारण नथी.
अनुभव करे त्यारे थाय छे, पण तेमां निमित्तनी पण ए विशेषता छे के निमित्तरूपे
पण भावश्रुतरूपे परिणमेला आत्मानी ज देशना होय. आ रीते ज्ञानीना भावश्रुतनी
ओळखाण ते भावश्रुतनुं कारण छे. आवा भावश्रुत वगरनुं तो बधुंय भाररूप छे.