: भादरवो : आत्मधर्म : १७ :
जरीक मंदता थाय त्यां ते मंदरागना वेदनमां (साताना वेदनमां) एकाकार
थईने तेने अज्ञानी शांतिनुं वेदन माने छे, पण ए कांई शांति नथी, ए तो रागनुं ज
वेदन छे. राग पोते आकुळतारूप–अशांत छे, तो तेना वेदनमां शांति केवी? रागथी
जुदो पडीने ज्ञानना वेदनमां आवे तो ज शांतिनुं वेदन थाय. रागथी भिन्नतानुं भान
पण जेने नथी तेने शांतिनुं वेदन केवुं? भेदज्ञान करीने रागथी भिन्न ज्ञानमां उपयोगने
जोडे तो ज स्वभावनी अतीन्द्रिय अपूर्व शांतिनुं वेदन थाय.
अशुद्धि
आत्मधर्म अंक २५० मां जे १०१ प्रश्नना उत्तरो आप्या छे तेमां नीचे मुजब
अशुद्धि रही गई छे ते सुधारवा विनंति छे–
* उत्तर (४०) मां पारिणामिकभाव प्रेसनी भूलथी छपाई गयेल छे.
अनादिशांतभावो बे ज छे–उदयभाव अने क्षयोपशमभाव.
* उत्तर (८५) मां गणधरदेवने पांचे भावो होई शके एम लखेल छे, ते
संबंधमां रात्रिचर्चामां गुरुदेवे कह्युं के गणधरदेव उत्कृष्ट ऋद्धिओना स्वामी छे, तेमने
उपशमश्रेणी न होय पण क्षपकश्रेणी ज होय. (आ संबंधी विशेष शास्त्राधार मळशे तो
हवे पछी आपीशुं.)
* उत्तर नं. (१२) मां बधा छद्मस्थ जीवोने उदय अने क्षयोपशम लखेल छे,
तेमां जरा वधु स्पष्टता आ प्रमाणे छे: बधा छद्मस्थ जीवोने क्षयोपशमभाव होय छे ने
छद्मस्थ सिवायना जीवोने ते भाव होतो नथी, ए विवक्षाना लक्षे आ प्रश्न लखायो
हतो. क्षयोपशम उपरांत उदय अने पारिणामिकभाव पण जो के बधा छद्मस्थ जीवोने
होय छे, परंतु छद्मस्थ सिवायना बीजा जीवोने पण ते भावो होय छे.
(उपरोक्त चर्चाओ प्रत्ये ध्यान खेंचनार वडील साधर्मीओनो ‘आत्मधर्म’
आभार माने छे.)