: १८ : आत्मधर्म : भादरवो :
विशुद्ध ज्ञानमां विकारनुं अकर्तापणुं..
भाई, तुं ज्ञानस्वभावने एकवार द्रष्टिमां तो ले.
ज्ञानस्वभावमां द्रष्टि करतां ज विकारनी रुचि छूटी जशे. विकारनुं
अकर्तृत्व थईने तारा पुरुषार्थनी गति ज्ञायकभाव तरफ वळशे. –
एमां सम्यग्दर्शन छे, एमां सम्यग्ज्ञान छे ने तेमां ज आनंदनो
अनुभव छे ज्ञायक–तरफनी परिणतिमां मोक्षमार्ग समाई जाय छे.
(श्रावणमास दरमियान समयसार–सर्वविशुद्धज्ञानअधिकार उपरना प्रवचनोमांथी)
* भगवान आत्मा पोताना ज्ञायकस्वभाव वडे परनो अकर्ता ज छे.
ज्ञायकस्वभावमां जे जीव सावधान थयो तेनी परिणति अंतरमां वळी; ते
परिणतिमां विकारनुंय अकर्तापणुं थयुं.
* आ प्रभु–आत्मा, जगतना अनंत पदार्थोथी जुदो छे, पोते आनंदरसना स्वादथी
भरेलो छे. ते ज्यारे पोताना ज्ञायकस्वभावने भूलीने परनी कर्तृत्वबुद्धि करे छे
त्यारे दुःखने अनुभवे छे. भाई, जगतना अनंता पदार्थो सौ पोतपोताना कार्यरूप
परिणमी ज रह्या छे, शुं ते परिणमन वगरना छे के तुं तेना कार्यने करे? तेनुं कार्य
तो ते करी रह्या ज छे, पछी तेमां तें शुं कर्युं? तुं तारा ज्ञानरूप परिणमन कर, ए
तारुं कार्य छे. तारा ज्ञानमां परनुं कर्तापणुं नथी.
* तुं ज्ञानस्वभावने एकवार द्रष्टिमां तो ले! ज्ञानस्वभावमां द्रष्टि करतां ज विकारनी
रुचि छूटी जशे...विकारनुं अकर्तृत्व थईने तारा पुरुषार्थनी गति ज्ञायकभाव तरफ
वळशे. –एमां सम्यग्दर्शन छे, एमां सम्यग्ज्ञान छे, ने एमां ज आनंदनो अनुभव
छे. ज्ञायकतरफनी परिणतिमां मोक्षमार्ग समाई जाय छे.
* ज्ञानी पोताना ज्ञानादि निर्मळभावोने तो स्वज्ञेयपणे तन्मय थईने जाणे छे; अने
ज्ञानथी भिन्न एवा परभावोने तथा परद्रव्योने परज्ञेयपणे तेमां तन्मय थया
वगर जाणे छे. आवी भेदज्ञान परिणतिमां कर्मनुं अकर्तापणुं ज छे. ते ज्ञानमां कर्म
बंधातुं नथी.
* जगतमां कोई पदार्थ परिणमन विनानो नथी. परिणमनरूप निजकार्यमां दरेक
पदार्थ तन्मयपणे वर्ती रह्यो छे. जीवना परिणाममां तन्मयपणे जीव वर्ते छे, ने
अजीवना