: भादरवो : आत्मधर्म : १९ :
परिणाममां अजीव तन्मयपणे वर्ते छे. कोई पदार्थ बीजाना परिणाम साथे कदी
तन्मय थतो नथी, जुदो ज रहे छे. मारा ज्ञानपरिणाममां ज हुं तन्मयपणे ऊपजुं
छुं–एम नक्की करतो ज्ञानी परनो अकर्ता ज रहे छे. आनुं नाम मोक्षनो पुरुषार्थ.
* भाई, पहेलांं तुं एकवात नक्की कर के मारो आत्मा ज्ञानस्वभावी छे. हवे
ज्ञानस्वभाव परिणमीने ज्ञानभावपणे ऊपजे के अजीवपणे ऊपजे? ज्ञानस्वभाव
कदी अजीवपणे न ऊंपजे, एटले के ज्ञाननुं कार्य अजीव न होय; ज्ञाननुं कार्य
ज्ञानमय ज होय, आ रीते ज्ञानभावमां ज्ञाननुं ज कर्तापणुं छे, ज्ञानभावमां
अन्यनुं अकर्तापणुं ज छे. आवुं ज्ञान–भावपणे ज परिणमतुं ज्ञान बंधनुं कारण
नथी, ते ज्ञान अबंध छे; ने ते ‘सर्वविशुद्ध’ छे. आवुं ‘सर्वविशुद्धज्ञान’ पोताना
निर्मळ परिणामने ज करे छे, ते कोई पदार्थने फेरववा जतुं नथी. ज्ञानमां सर्वने
जाणवानी ताकात छे, पण कोईने आघुंपाछुं करवानी ताकात नथी. ज्ञानना आवा
स्वभावनो निर्णय ते वीतरागभावनुं कारण छे.
* भाई, तने तारा ज्ञाननो विश्वास पण न आवे तो तुं अंतर्मुख क्यारे थईश?
ज्ञान पासे जे परनुं काम कराववा मांगे के ज्ञान पासे विकार कराववा मांगे ते जीव
परथी ने विकारथी भिन्न ज्ञानस्वभावरूप क्यारे परिणमे? ने एने वीतरागता
क्यारे थाय? ज्ञाननी जेने प्रतीति नथी–अनुभव नथी तेने वीतरागभावरूप
धर्मनो अंश पण होतो नथी. ज्ञाननुं ज्ञानरूप (रागथी भिन्न) परिणमन थवुं ते
धर्म छे.
* धर्म कहो के ज्ञानचेतना कहो; आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, तेनुं ज्ञान अंतर्मुख थईने
ज्ञानपणे ज परिणमे ने रागद्वेष के हर्षशोकरूपे न परिणमे –ते ज्ञानचेतना छे, तेमां
ज्ञाननुं ज कर्तृत्व छे ने वीतरागी आनंदनुं भोक्ततृत्व छे –आवुं शुद्धज्ञान ते
मोक्षनुं कारण छे.
* आत्मामां ज्यां शुद्ध ज्ञानपरिणमन थयुं त्यां तेना परिणमनमां विकार साथे
आकार्यकारणपणुं थयुं; एटले शुद्धज्ञानपर्यायने विकारनुं कार्यपणुं पण नथी ने
विकारनुं कारणपणुं पण नथी. ज्ञान कारण थईने विकारनुं कार्य करे–एम नथी
तेमज विकारने कारण बनावीने ज्ञान तेनुं कार्य थाय–एम पण नथी. आ रीते
ज्ञानभावने विकारथी अत्यंत भिन्नता छे. ज्ञानमां विकारनुं कर्तृत्व जरापण भासतुं
नथी. अहा, आवुं भेदज्ञान ते जैनदर्शननुं मूळ छे. एकवार आवुं भेदज्ञान करे तो
विकारथी जुदुं पडीने ज्ञान पोताना निजानंदनुं संवेदन करतुं करतुं मोक्षदशाने पामे.
* चेतनापरिणति त्रण प्रकारनी–एक ज्ञानचेतना, बीजी कर्मचेतना ने त्रीजी
कर्मफळचेतना; व्यवहारना विकल्पोमां वर्तती चेतना ते पण कर्मचेतना छे, ने
कर्मचेतना ते बंधनुं कारण