: २० : आत्मधर्म : भादरवो :
छे. ज्ञान अंतर्मुख थईने पोते पोताना स्वभावने संचेते–अनुभवे छे. आवी
ज्ञानचेतना छे. आवी ज्ञानचेतनानो कणियो जाग्यो ते केवळज्ञान पमाडे छे.
* ज्ञानीनुं कर्ताकर्मपणुं पोताना ज्ञानमां ज समाय छे, तेमां बीजानी अपेक्षा नथी.
ज्ञानने पोताना कर्ताकर्ममां जेम परनी तो अपेक्षा नथी तेम विकारनी पण अपेक्षा
नथी. अज्ञानी विकारना कर्ताकर्ममां अटक्यो छे, ते ज्ञाननुं खरूं कार्य नथी. भाई,
तारा ज्ञाननुं कर्तृत्व एवुं नथी के ए बीजा कोईनुं कार्य करवानी अपेक्षा राखे.
ज्ञाननुं कर्तृत्व एवुं निरपेक्ष छे के ते पोतामां ज शमाय छे; ए ज रीते भोक्तापणुं
पण पोतामां ज समाय छे. अहा, आवुं निरपेक्ष स्वतत्त्व लक्षमां ल्ये तो केटली
स्वाधीनता! केटली निराकूळता! केटली शांति! ने केटली वीतरागता!! निरपेक्ष
स्वतत्त्वने जीवे कदी लक्षमां लीधुं नथी ने बहारनी ज अपेक्षा राखीने पराश्रयमां
रखडी रह्यो छे. एकवार निरपेक्ष स्वतत्त्वने लक्षमां ल्ये तो अपूर्व श्रद्धा–ज्ञान–
आनंद प्रगटे.
* जगतना पदार्थो पोतपोताना कर्ता छे; परनी अवस्थानो कर्ता पर, ने मारी
अवस्थानो कर्ता हुं; परनी अवस्था मारुं कार्य नहि, ने मारी अवस्था परनुं कार्य
नहि; परनी साथे मारे कर्ताकर्मपणानो संबंध जरापण नथी हुं तो ज्ञान छुं ने ज्ञान
ज मारुं कार्य छे. आवा निर्णयमां स्वसन्मुखपरिणति थाय–तेनुं नाम धर्म छे. ए
स्वसन्मुखपरिणतिमां अनंत गुणोना निर्मळ कार्य थाय छे, तेनो ज धर्मी कर्ता छे.
* अहा, सत् तत्त्वना निर्णयमां केटलुं जोर छे–तेनी सामान्य लोकोने खबर नथी. एक
सत् तत्त्वना निर्णयमां नवे तत्त्वोनो निर्णय समायेलो छे; अरिहंतोनो ने सिद्धोना
स्वरूपनो निर्णय पण स्वतत्त्वना निर्णयमां समाय छे. स्वतत्त्वने एटले के
ज्ञायकतत्त्वने भूलीने एकेय तत्त्वनो निर्णय थई शकतो नथी.
* जे परिणति स्वतत्त्वनो निर्णय करीने अंतरमां वळी ते परिणतिमां पोताना आनंद
वगेरेनुं वेदन छे, पण विकारनुं वेदन ते परिणतिमां नथी. ज्यां विकारनाय वेदननुं
कर्तृत्व नथी त्यां परनुं कर्तृत्व तो क्यां रह्युं? शुद्धउपादान पोताना शुद्ध कार्यने ज
करे छे अहा, निजरसथी शुद्ध परिणमेलुं ज्ञान रागादिनुं अकर्ता छे, ने कर्मबंधनुं
पण निमित्तकर्ता ते नथी. आवुं विशुद्ध ज्ञान मोक्षने साधे छे.
* चैतन्यमांथी चैतन्यनी ज स्फूरणा थाय छे; चैतन्यमांथी विकारनी स्फूरणा थती
नथी. जेम सूर्यमांथी प्रकाश ज नीकळे छे, सूर्यमांथी अंधारूं नथी नीकळतुं, तेम
चैतन्यसूर्यमांथी ज्ञानप्रकाश ज नीकळे छे, चैतन्यसूर्यमांथी विकाररूप अंधकार नथी
नीकळतो. पण एवा