Atmadharma magazine - Ank 251
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 24 of 29

background image
: भादरवो : आत्मधर्म : २१ :
चैतन्यनी स्फूरणा क्यारे जागे? के ज्यारे अंतरमां डूबकी मारीने चैतन्यस्वभावी
आत्मानो निर्णय करे त्यारे तेमांथी चैतन्यकिरणो स्फूरे अने ते चैतन्यकिरणमां
(सम्यक् श्रुतमां) समस्त तत्त्वनो निर्णय करवानी ताकात छे; समस्त आगमोनुं
रहस्य ते ज्ञानमां आवी जाय छे.
* एक बाजु आखोय ज्ञानस्वभाव अनंतगुणथी भरपूर, तेनी तो अचिंत्य महत्ता
भासती नथी, ने कांईक शुभविकल्प करे, कंईक कषायनी जरा मंदता करे, त्यां तो
‘ओहो, घणुं करी नांख्युं’ –एम महत्ता लागी जाय छे; तेने आचार्यदेव समजावे छे
के अरे मूढ! आवुं अज्ञान तुं क्यांथी लाव्यो? चैतन्यनी महत्ताने बदले विकारनी
महत्ता तने क्यांथी भासी? संतोए तो शास्त्रोमां ज्ञाननो महिमा भर्यो छे ते तने
केम नथी देखातो? ने विकारना कतृत्वमां केम रोकाणो छे? ए कर्तृत्वबुद्धि छोड, ने
ज्ञानमहिमामां उपयोगने जोड.
* सिद्धान्त ए तो सन्तोना अनुभवना ईशारा छे. पूरो अनुभव वाणीमां तो केम
आवे? पण सिद्धान्तमां तेनुं मात्र दिशासूचन आव्युं छे, संतोए अनुभवना
ईशारा सिद्धान्तमां भर्या छे. बाकी तो अनुभवगम्य वस्तु ते कांई वाणीगम्य थाय
तेवी नथी.
* ज्ञान आत्मानुं निजलक्षण छे. ते ज्ञानलक्षणमां विकारनुं कर्तृत्व के भोकर्तृत्व नथी.
अने ए ज्ञानलक्षणमां जगतनी कोई वस्तु अनुकूळ के प्रतिकूळ नथी. ज्ञानलक्षण
स्वयं आनंदसहित छे, तेमां आनंदनो ज भोगवटो छे.
* ज्ञानने जेम जगतनी प्रतिकूळतानो भय नथी, तेम जगतनी अनुकूळतानी प्रीति
पण नथी. जगतना पदार्थोनी साथे ज्यां कर्ता के भोकतापणानो अभाव छे त्यां
तेने ईष्ट–अनिष्ट मानवानुं क्यां रह्युं? ने ईष्ट–अनिष्टपणुं ज्यां नथी त्यां राग द्वेष
पण क्यां रह्या? एटले ज्ञानीने राग–द्वेषनुं कर्तृत्व पण ज्ञानमांथी नीकळी गयुं छे.
* केवळकिरणोथी शोभतो आ भगवान चैतन्यसूर्य तेने प्रतीतमां लेवामां अपूर्व
उद्यम छे.... आखी परिणति गूलांट खाईने अंदरमां वळे छे. सातमी नरकथी
मांडीने नवमी ग्रैवेयक सुधीमां परिभ्रमण करवा छतां चैतन्यनी प्रभुता जराय
खंडित नथी थई. –एने प्रतीतमां लेतां परिभ्रमण टळे छे.
वैराग्य समाचार : वींछीआना जलुबेन मूळचंद श्रावण वद १२ ना रोज
जोरावरनगर मुकामे स्वर्गवास पाम्या छे....तेमने सत्समागम माटे उत्कंठा हती ने
गुरुदेव प्रत्ये भक्तिभाव हतो. तेओ जिनशासननी छायामां आत्महित पामो.