: २२ : आत्मधर्म : भादरवो :
परम वैराग्यरूप मार्ग
(श्री पंचास्तिकाय–प्रवचनमांथी... भादरवा सुद पूनम)
जैनधर्म ए वीतरागधर्म छे, जैनमार्ग ए वीतरागमार्ग
छे; जैनमार्ग कहो के मुक्तिनो मार्ग कहो–ते वीतरागभावमां ज
समाय छे. एटले परम वैराग्यरूप वीतरागभाव ते ज
मोक्षमार्ग छे, ते ज मुमुक्षुनुं कर्तव्य छे. आवा सम्यक्मार्गनो
निर्णय करीने पछी स्व–पर आत्मामां तेनो उद्योत करवो ए ज
खरी मार्गप्रभावना छे. कुंदकुंदस्वामी आदि संतोए आवी
मार्गप्रभावना करीने जगत उपर उपकार कर्यो छे.
‘मार्ग’ एटले परम वैराग्य करवा प्रत्ये ढळती पारमेश्वरी आज्ञा. जुओ,
पराश्रय तरफ ढळवानी के राग तरफ ढळवानी परमेश्वरनी आज्ञा नथी. परमेश्वरनी
आज्ञा तो परम वैराग्यनी ज छे एटले स्व. तरफ ढळीने वीतरागभाव थाय ते ज
जिनशासनमां भगवाननी आज्ञा छे; ने ते ज मोक्षनो मार्ग छे.
आवो मार्ग जाणीने तेनी प्रसिद्धि करवी अने पोतानी पर्यायमां उत्कृष्टपणे ते
प्रगट करवो–तेनुं नाम ‘मार्गप्रभावना’ छे. कुंदकुंदस्वामी कहे छे के आवी
मार्गप्रभावना–अर्थे में आ सूत्र कह्युं छे.
जुओ, भगवानना मार्गनो उद्योत वीतरागभाववडे ज थाय छे, ने तेमां ज
भगवाननी आज्ञा छे. उपदेशमां पण वीतरागी तात्पर्य ज होय, ने अंतरना
अभिप्रायमां पण वीतराग भावनुं ज तात्पर्य होय; अंश मात्र पण रागना पोषणनो
अभिप्राय न होय, –आवो जिनमार्ग छे. आथी विरुद्ध मार्ग माने, रागने मार्ग माने,
तो ते जीव वीतरागजिनमार्गनी प्रभावना केम करी शके? तेने मार्गनी खबर नथी,
तेने भगवाननी आज्ञानी खबर नथी; परमवैराग्य परिणति तेने होती नथी. मार्गना
निर्णयमां ज ज्यां भूल होय त्यां मार्गनो उद्योत क्यांथी करे? पहेलांं सम्यक्मार्गनो
निर्णय करवो जोईए.