Atmadharma magazine - Ank 251
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : आत्मधर्म : २३ :
अहो, मार्ग तो स्वाश्रित छे, मार्ग पराश्रित नथी. –आवो मार्ग जगतमां पण
प्रसिद्ध थाय–एवा अनुरागथी कुंदकुंदस्वामीए आ शास्त्र रच्युं छे. नियमसारमां पण
तेओश्री कहे छे के शुद्धरत्नत्रयरूप जे नियम छे ते मार्ग छे, अने ते मार्ग परथी अत्यंत
निरपेक्ष छे, –परनो जराय आश्रय तेमां नथी, एकला स्वाश्रये ज रत्नत्रयमार्ग छे, ने
ते ज नियमथी कर्तव्य छे. वच्चे राग आवी पडे छे, पण राग ए कांई मुमुक्षुनुं कर्तव्य
नथी. राग ए कांई परम वैराग्य परिणति नथी, ए तो पर तरफ ढळती परिणति छे.
अरे, आवो सुंदर चोख्खो मार्ग! एनो एकवार निर्णय तो करो.
अहा, चैतन्यवस्तु ज्ञायकभाव...तेमां वाणी नथी, विकल्प नथी. आवी
चैतन्यवस्तु... जे वीतरागरसथी भरेली छे तेना आश्रये वीतरागी चैतन्यपूर वहे छे,
ते ज मार्ग छे. आवा मार्गनो उद्योत थाय एटले के पोतानी पर्यायमां ते प्रगटे ने
जगतमां पण तेनी प्रसिद्ध थाय–तेनुं नाम मार्गप्रभावना छे. आवी मार्गप्रभावनाना
वारंवार घोलनथीआ शास्त्र रचायुं छे; बहारमां आ सूत्रो रचायां छे ने अंतरमां
वीतरागभाव रचायो छे. आवा वीतरागभावनी रचना ते कार्य छे. आचार्यदेव विकल्प
तोडी, स्वरूपमां स्थिर थया त्यां वीतरागभावरूप परम नैष्कर्म्य दशा थई एटले
कृतकृत्यता थई करवा योग्य एवुं जे वीतरागभावरूप कार्य ते तेमणे करी लीधुं. अहा,
आ वीतरागभाव ते परम शांतिरूप विश्रांतभाव छे, रागमां तो जरा कलेश हतो, तेमां
परिणतिने विश्रांति नहोती. ते राग तोडीने स्वरूपमां ठर्या त्यां परिणति विश्रांतिने
पामी. टीकाकार श्री अमृतचंद्राचार्य कहे छे के ‘अहो! कुंदकुंदाचार्यदेव आवी दशाने
पाम्या. एम अमे श्रद्धा करीए छीए’ जुओ, आ निर्णयनी शक्ति. १००० वर्ष पहेलां
थई गयेला कुंदकुंदाचार्य–तेमनी दशानी ओळखाण करीने अमे प्रतीत करीए छीए के
तेओ स्वरूपमां विश्रांत थया हता, शुद्धोपयोगमां तेओ ठर्या हता ने कृतकृत्य थया हता.
मार्गप्रभावक आवा वीतरागी संतोने नमस्कार हो.