वखत थोडो छे ने काम घणुं छे
आ मोंघुं मनुष्यजीवन, अत्यंत अल्प आयु, तेमां चेतन्यना अचिंत्य
निधान खोलवानुं महान कार्य करवानुं छे. आवा किंमती जीवननो समय
नजीवी बाबतोमां वेडफी नाखवानुं मुमुक्षुने पालवे नहि. माटे हे जीव! तुं
जागृत थईने स्वकार्यमां सावधान था; अवसर चाल्यो जशे तो पस्तावो रही
जशे.
रात्रिचर्चामां वैराग्यथी आ वात करतां गुरुदेवे कह्युं : एक माणसने
मोतनुं तेडुं आव्युं, सांजे मोत थवानुं छे त्यां सुधीमां तारे कांई सत्कार्य करवुं
होय ते करी ले....ते मूर्ख माणस मोतथी खूब डर्यो. पण वच्चे सुंदर वेश्याने
नाचती देखीने बे घडी ते जोवामां रोकाई गयो; पछी सुंदर मीष्ट भोजन
देखीने ते खावा ललचायो ने बेघडी तेमां वीतावी; पछी क्यांक गीत–गान
चालता हता ते सांभळवामां रोकाई गयो; थोडोक वखत बाकी रह्यो ते
कुटुंबनी –दुकाननी ने रूपियानी संभाळ करवामां गूमाव्यो.... त्यां तो सांज
पडी ने मोतभाई तो आवीने उभा रह्या. आ भाईसाहेब तो कहे के तुं
थोडीवार थोभ.... में कंई सारू काम नथी कर्युं माटे कंईक सत्कार्य करुं त्यांसुधी
हे मोत! तुं ऊभुं रहे. –पण शुं मोत ऊभुं रहे? मोत तो आव्युं अने ए
मूर्खना पस्तावानो पार न रह्यो. तेम आ मोंघा मनुष्यजीवननो टूंकोकाळ,
तेमां चैतन्यने साधवानुं महान कार्य संभाळवानुं छे. पोतानुं कार्य करवा
आडे मुमुक्षुने बीजानुं जोवानो वखत क्यां छे? कोईथी राजी थवानो के
कोईथी नाराज थवानो वखत ज क्यां छे? अंतरना अनंता चैतन्यनिधान
खोलवानुं काम करवानुं छे; ते अर्थे सतत श्रवण–स्वाध्याय–मनन ने मंथन
करवा आडे जगतनी नानी नानी बाबतोमां रोकावानो अवकाश ज क्यां छे,
भाई! बीजानुं जोवानो वखत ज क्यां छे? जेम द्रष्टांतनो मूरखो आयुषनो
अल्पकाळ पांच ईन्द्रियना विषय–कषायोमां गूमावीने पस्तायो, तेम आ
मोंघुं जीवन तेमां स्वकार्यने चूकीने, पंचेन्द्रियना विषय–कषायोमां ज जे
वखत गूमावे छे, जगतथी राजी थवामां ने जगतने राजी करवामां ज जे
रोकाई रहे छे ने आत्महितना कार्यनो जराय उद्यम करता नथी तेने आ
अमूल्य अवसर चाल्यो जतां पस्तावानो पार नहि रहे. माटे फरीफरीने संतो
कहे छे के हे जीव! वखत थोडो छे ने काम घणुं छे, माटे तारा स्वकार्यने
संभाळ. आ सोनेरी अवसर आव्यो छे. (रात्रि चर्चा उपरथी)