
मिथ्याद्रष्टि छे. हुं तो ज्ञानस्वभाव ज छुं ने ज्ञानस्वभावना अवलंबनथी ज तेनी श्रद्धा
ने अनुभव थाय छे, तेमां बहारनुं बीजुं कोईनुं अवलंबन नथी.
(शरीर) तेनी वच्चे चैतन्यचिंतामणि पड्यो छे, ते कांई पुद्गलना पिंड साथे एकमेक थयो
नथी. संयोगना ढगला वच्चे चैतन्यभगवान कांई ढंकाई गयो नथी. एक परमाणु के
त्रिलोकनाथ परमात्मा, ए बधाय परद्रव्योथी मारो आत्मा जुदो छे; अरे, सूक्ष्म रागनी
वृत्तिओ (गुणभेदना व्यवहारनी वृत्तिओ) तेनाथी पण चिदानंदस्वभाव जुदो ने जुदो छे–
आवा आत्माने श्रद्धा–ज्ञानमां ल्ये ते ज ज्ञानी छे. आठमी गाथामां कह्युं छे के दर्शन–ज्ञान–
चारित्रना भेदरूप व्यवहार वच्चे आवे छे पण ते अनुसरवायोग्य नथी, व्यवहारना
अनुसरणथी कांई परमार्थनो अनुभव थतो नथी. माटे कहे छे के बुधजनोए आत्मज्ञान
सिवायना बीजा कार्यमां तत्पर न थवुं. व्यवहार वच्चे आवे पण ए व्यवहार कांई लंबाववा
जेवो नथी, तेनी होंश करवा जेवी नथी. जेम मुनिओ लौकिक कार्योनो बोजो माथे राखता नथी,
तेम ज्ञानी धर्मात्मा व्यवहारना अवलंबननो बोजो राखता नथी एटले के आ व्यवहारना
अवलंबनथी मने लाभ थशे के आ व्यवहारना अवलंबनमां मारे लांबो काळ रोकावुं पडशे–
एवी भावना ज्ञानीने नथी. मारा एक परमार्थ स्वभावमां ज हुं तत्पर छुं, तेना ज
अवलंबनमां होंश–उत्साह ने भावना छे.
चैतन्यमां रागनी चीकाश नथी; मारा चैतन्यतत्त्व उपर परभावनो बोजो नथी, आवी श्रद्धा
करीने स्वसन्मुख थाय तो आत्मा तद्न हळवो थई जाय. ज्यां अकर्तापणुं प्रगट्युं ने आत्मा
साक्षीपणे–ज्ञाताभावे ज परिणम्यो–त्यां तेने शी चिन्ता? अने शेनो बोजो? बधोय बोजो
एना माथेथी ऊतरी गयो....ने छूटकारानी हवा एने स्पर्शी.
अनेक प्रकारना विधविध प्रकृतिना जीवो छे; कोईने रुचे, कोईने न रुचे, त्यां तुं कोईनी
साथे वादविवादमां पडीश नहि, ने स्वघरमां बेठोबेठो अंतरमां तारी ज्ञाननिधिने
भोगवजे... स्वभाव–सन्मुख थवामां तत्पर थजे; जगत सामे जोवा रोकाईश नहि.